सबको सुख देने की रखें सोच, कभी मत करो दुख बढ़ाने वाले काम: प्रवीण ऋषि
भीलवाड़ा (हलचल)। भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के उपलक्ष्य में उपाध्याय प्रवीण ऋषि के मुखारविंद से महावीर गाथा सुनने के लिए पांचवें दिन सोमवार रात भी आजाद चौक में भीलवाड़ावासी उमड़े। श्रीवर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ शांति भवन के तत्वावधान में रात 8.30 से 10 बजे तक चली महावीर गाथा में प्रवीण ऋषि ने कहा कि जिंदगी में पाप की राह कब शुरू हुई, कोई नहीं जानता लेकिन जब राह में महावीर आते हैं तो पाप की मौत तय है। उन्होंने दुख से बचने की शिक्षा देते हुए कहा कि दुखी आदमी दूसरों को भी दुखी करता है जबकि सुखी आदमी दूसरों को भी सुखी बनाता है। जिस पल तुम अपने सेवक पर जुल्म करते हो, अपने लिए नरक के बीज बोते हो। सामने वाला गुस्सा करे तो वह दुखी है ये मान उसे और दुखी मत करो। कभी दुख बढ़ाने वाले काम मत करो। प्रवीण ऋषि ने कहा कि तुम किसी के दुख दूर करोगे तो तुम्हारे दुख दूर करने वाला भी मिलेगा। दुख देने वाले नहीं बल्कि दूर करने वाले बनो। अनादिकाल से हम दुख देने के मास्टर बने हुए हैं। इस बार भगवान महावीर जन्म कल्याणक पर संकल्प लें कि हमारे रहते हुए कोई दुखी नहीं रहेगा। उन्होंने दूसरों के दिलों में जगह बनाने की अपील करते हुए कहा कि दूसरों की परिस्थिति को समझने का हौंसला रखने वाला किसी के भी दिल में जगह बना सकता है और ऐसा हौंसला नहीं रखने वाले रिश्ते जीने का आनंद नहीं उठा सकते। ऋषि ने कहा कि व्यक्ति जब सामने वाले की स्थिति देखे बिना जिद पर अड़ जाता है तो जिंदगी में नरक की शुरूआत हो जाती है। जिस रिश्ते की शुरूआत प्यार के फेरों से होती है वह तलाक तक क्यों पहुंच जाती है, प्यार के रिश्ते नफरत में क्यों बदल जाते हैं। प्यार में जब हम एक-दूसरे को समझने से इनकार करते हैं तो वह नफरत में बदल जाता है। उन्होंने कहा कि तुम्हारे और मेरे अंदर सोए हुए महावीर को जगाने और महावीर बनने के लिए महावीर गाथा है, महावीर का चरित्र सुनाने के लिए महावीर गाथा नहीं है। उपाध्याय प्रवीण ऋषि ने कहा कि तीर्थंकर बनने की दिशा में पहला संकल्प लें कि मैं किसी के लिए दुखदायी नहीं बनूंगा और मेरे रहते हुए कोई दुखी नहीं होगा। संघपति संकल्प लें कि मेरे समाज में कोई दुखी नहीं रहेगा। भीलवाड़ा में ऐसी व्यवस्था करनी ही होगी। ये मेरा अभियान एवं मिशन है एवं मैं इसके लिए ही घूम रहा हूं। धर्मसंघ में कोई दुखी नहीं रहे ये जिम्मेदारी संघपति को लेनी होगी। समाज के व्यक्ति को ये विश्वास बन जाना चाहिए कि मैं इस समाज में हूं तो मुझे कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। महावीर गाथा के शुरू में तीर्थेश ऋषि ने भजन सुनाया। महावीर गाथा में राष्ट्रसंत कमलमुनि कमलेश का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। महावीर गाथा के शुरू में स्वागत एवं संचालन श्रीवर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के मंत्री राजेन्द्र सुराणा ने किया। |
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