यूआईटी में यह क्या हो रहा है- चक्कर काटते रहो, पैसा नहीं तो काम नहीं

 



 भीलवाड़ा (हलचल)। अगर आपने नगर विकास न्यास में कोई फाइल लगा रखी है तो यकीन मानिए आपका काम नहीं होने वाला। इस काम के लिए हर दिन चक्कर लगाने होंगे, लेकिन काम नहीं होगा।  चाहे रजिस्ट्री का काम हो या पट्टा वितरण या नामांतरण का। ऐसे कामों के लिए हर दिन सैकड़ों लोग न्यास के चक्कर लगाते मिल जाते हैं। 
सूत्रों की मानें तो नगर विकास न्यास में कथित भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। एक तो यहां संविदा पर कर्मचारी लगे हुए हैं जो अपनी मनमर्जी से काम करते हैं। इसके बदले में दक्षिणा भी मांगते हैं। नहीं दो तो चक्कर लगाते रहो और दे दो तो भी जल्दी काम नहीं होता। अगर आम आदमी की हैसियत से देखा जाए तो उसकी चप्पल भी यूआईटी के चक्कर काटते-काटते घिस जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जा सकता है कि यूआईटी पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।


मांगा जाता है फाइल पर वजन
यूआईटी में आम आदमी का काम होना तो दूर, सबसे पहले तो उसकी फाइल ही कहीं धूल फांक रही होती है। मिल भी जाए तो कर्मचारी देखते नहीं और वजन की मांग करते हैं। भीलवाड़ा निवासी एक व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि संविदा पर लगे कर्मचारी 25 हजार या ज्यादा की मांग करते हैं जो उनके वश की बात नहीं है। उन्होंने बताया कि सरकार एक ओर तो भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जीरो टोलरेंस पॉलिसी की बात करती है वहीं सरकारी लोग डिमांड करते हैं।


ढूंढ़े नहीं मिलती फाइलें
न्यास के लंबे समय से चक्कर लगा रहे कई लोगों ने बताया कि न्यास में आकर फाइलों के बारे में पड़ताल करते हैं तो कर्मचारी फाइल नहीं होने या बाद में ढूंढऩे की बात कहते हुए दो से तीन दिन बाद वापस बुलाते हैं। वापस जाने पर भी उनका कहना होता है कि अभी फाइल नहीं मिली है, ढूंढ़ रहे हैं। आप सोमवार को आना। वो सोमवार भी कभी नहीं आता। ऐसे में लोगों का नौकरशाही से विश्वास ही उठ गया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यूआईटी व इससे जुड़े लोगों का काम कभी होगा या नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता।


दलालों की मिलीभगत
यूआईटी में काम कराने के लिए लोगों को दलालों से संपर्क करने को कहा जाता है जो ऊपर से नीचे तक के लोगों के हिस्से सहित कमीशन की मांग करते हैं। ऐसे में लोगों को अपना काम कराने के लिए हजारों रुपए कमीशन के नाम पर देने पड़ रहे हैं।
पैसा बोलता है...
यूआईटी में काम कराने के लिए लोगों को दलालों व संविदा पर लगे कर्मचारियों को पैसा देना पड़ता है। लोगों की मानें तो यूआईटी में काम कराने के लिए पैसा देना ही पड़ता है क्योंकि पैसा बोलता है। ऐसे में वे लोग जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं, उन्हें अपना काम कराने के लिए चक्कर लगाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

पिछले हफ्ते विशेष अधिकारी ने कर्मचारियों को लताड़ा था
यूआईटी में लोगों के काम नहीं होने पर पिछले हफ्ते यूआईटी के विशेष अधिकारी  माघीवाल ने संविदा पर लगे कर्मचारियों को पाबंद करने के साथ लताड़ा थ लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। अधिकारी की डांट-फटकार के बाद भी कर्मचारियों का कार्यशैली में सुधार नहीं करना उनकी लोलुपता को दर्शाता है। हालांकि अधिकारी भी यूआईटी के अधिकारी भ्रष्टाचार की बात को स्वीकार नहीं करते लेकिन यह पब्लिक है, सब बोलती है।

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