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पंछी नील गगन के

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  नमन-मगसम पटल पंछी नील गगन के सदा उन्मुक्त रहे हैं/ हम पंछी नील गगन के// सदा संतुष्ट रहे हैं/ हम पंछी नील गगन के// कई हादसे आए/ हमने घोंसलों में ही बिताए// थोड़ा सा धीरज रखा तो/ आसमां साफ हो आए// सतत उड़ा भरते रहे हैं/ हम पंछी नील गगन के// विस्तृत नभ में विचरते रहे हैं/ हम पंछी नील गगन के// *सदा उन्मुक्त रहे हैं/* *हम पंछी नील गगन के//* *सदा संतुष्ट रहे हैं/* *हम पंछी नील गगन के//* नीलाम्बर मन पवित बनाता/ क्षितिज प्रेम का पाठ पढ़ाता// मन का पंछी झूम के गाता/ दिलटूटों में होंसला जगाता// सदा कृत संकल्पित रहे हैं/ हम पंछी नील गगन के// पल्लवित पोषित रहे हैं/ हम पंछी नील गगन के// *सदा उन्मुक्त रहे हैं/* *हम पंछी नील गगन के//* *सदा संतुष्ट रहे हैं/* *हम पंछी नील गगन के

उसके जीतने की वजह जानकर लोग हैरान रह गए

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  एक बार एक गांव में पहाड़ पर चढ़ने की प्रतियोगिता हुई। पहाड़ की चढ़ाई सीधी थी, इसलिए उस पर चढ़ना आसान नहीं था, लेकिन फिर भी बहुत से लोगों ने उस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। गांव में प्रतियोगिता को देखने वालों की भीड़ जमा हो गई। हर तरफ शोर ही शोर था। प्रतियोगियों ने चढ़ना शुरू किया, लेकिन सीधे पहाड़ को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी आदमी को ये यकीन नहीं हुआ कि कोई भी व्यक्ति ऊपर तक पहुंच पाएगा। हर तरफ यही सुनाई दे रहा था, अरे ये बहुत कठिन है। ये लोग कभी भी सीधे पहाड़ पर नहीं चढ़ पाएंगे। जो भी आदमी कोशिश करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता। कुछ लोगों ने गिरने के बाद दो से तीन बार प्रयास और किए, लेकिन भीड़ की नकारात्मक बातें सुनने के बाद उनके भी हौसले पस्त हो गए और उन्होंने हार मान ली। बहुत देर तक ऐसा ही चलता रहा। लगभग सभी लोग हताश हो चुके थे। लेकिन उन्हीं लोगों के बीच एक प्रतियोगी था, जो बार बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर पहाड़ पर चढ़ने में लगा हुआ था। वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वो सीधे पहाड़ के ऊपर पहुंच गया और प्रतियोगिता का विजेता बना। ये देखकर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न...

दुख से कोई सरोकार नहीं

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  एक बार गुर्जर नरेश सम्राट कुमार पटल के गुरु आचार्य हेमचंद्र राजधानी पाटण लौट रहे थे। रास्ते में विश्राम के लिए वे एक गरीब विधवा स्त्री की झोपड़ी में ठहर गए। स्त्री ने बड़े मन से उनकी सेवा की। जब आचार्य हेमचंद्र वहां से जाने लगे, तो उस विधवा ने उन्हें अपने हाथ से बुनी सूत की एक चादर भेंट की। चादर को ओढ़ कर आचार्य राजधानी पाटण पहुंचे। सम्राट पटल गुरु के शरीर पर एक साधारण-सी सूत की चादर देखकर क्रोधित हो गए और बोले, ‘गुरुजी, यह साधारण-सी चादर आपके शरीर पर शोभा नहीं देती। इसे उतार कर मूल्यवान दुशाला ओढ़ लीजिए।’ आचार्य हेमचंद्र बोले, ‘अरे, यह शरीर तो अस्थि और मांस-मज्जा का ढेर है। चादर ओढ़ने से इसका क्या बिगड़ जाएगा और कीमती दुशाला ओढ़ने से क्या संवर जाएगा?’ सम्राट बोले, ‘गुरुदेव, आप तो शरीर के सुख और शोभा से निर्लिप्त हैं, किंतु मुझे यह देखकर लज्जा आती है।’ आचार्य बोले, ‘राजन, तुम शायद नहीं जानते कि इस चादर के पीछे अनेक गरीबों की मेहनत छुपी है। इसे ओढ़कर मुझे लज्जा नहीं, गर्व होता है। लेकिन तुम्हें अपने सुख के आगे उनके दुख से कोई सरोकार नहीं है।’ सम्राट लज्जित हो गए और आचार्य से माफी ...

Happy Propose Day 2022 Wishes: सदियों से अधूरा हूं...अपने valentine को भेजें एक से बढ़कर एक प्रपोजल मैसेज

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     वैलंटाइन वीक के दूसरे दिन प्रपोज डे सेलिब्रेट किया जाता है. इस दिन कई लोग अपने लवर, सोलमेट को पहली बार प्रपोज करते हैं. आप भी अपने वैलेंटाइन को इम्प्रेस करना चाहते हैं या उनके दिल की बात जानना चाहते हैं तो यहां से भेज सकते हैं कुछ अनोखे विशेज, प्रपोजल मैसेज... Happy Propose Day 2022:कुछ कहने को दिल करता है कुछ कहने को दिल करता है, जिसे कहते हुए डर लगता है, आज प्रोपोज-डे है, कह ही डालते हैं, हम तुम्हें दिल-ओ-जान से ज्यादा मोहब्बत करते हैं..!! Happy Propose Day 2022: कसूर तो था ही इन निगाहों का कसूर तो था ही इन निगाहों का जो चुपके से दीदार कर बैठा हमने तो खामोश रहने की ठानी थी पर बेवफा ये ज़ुबान इज़हार कर बैठा Will you be mine forever? Happy Propose Day 2022: दिल करता है ज़िन्दगी तुझे दे दू दिल करता हैं ज़िन्दगी तुझे दे दू, ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ तुझे दे दू, दे दे अगर तू मुझे भरोसा अपने साथ का, तो यकीन मान अपनी सांसे भी तुझे दे दू Propose Day 2022: All I wanted was someone to care for me All I wanted was someone to care for me, All I wanted was someone who’...

मेरे पास

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  मृदुला  घई    यूँ ख्यालों में ना होते गुम अगर मेरे पास ही होते तुम   होके अपनी मुस्कराहटों पे सवार हँसी सा खनक जाते हम दिल की धड़कन में गूँज सरगम सा बज जाते हम तब गहरी आँखों में डूब नशे से झूम जाते हम मौन को मौन से रिझा बातों में खो जाते हम   यूँ ख्यालों में ना होते गुम अगर मेरे पास ही होते तुम   शरमाई नशीली नज़रों से सहला सुरूर में बहक जाते हम आत्माओं को झीना सा कर सौंधे से महक जाते हम अटूट चाहत में हो सराबोर अपने से हो जाते हम दिल की आग में तप सावन सा बरस जाते हम यूँ ख्यालों में ना होते गुम अगर मेरे पास ही होते तुम   प्यार इज़हार में हो मदहोश मोम सा पिघल जाते हम प्रेम पुकार की बन कशिश सीने से लिपट जाते हम मिलन की उम्मीद से सिहर बाँहों में सिमट जाते हम साँसों को साँसों में मिला प्यार में भीग जाते हम   यूँ ख्यालों में ना होते गुम अगर मेरे पास ही होते तुम लेखिका श्रम मंत्रालय में एम्प्लाइज प्रोविडेंट फण्ड कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं  

जीवन का अर्थ बताती है अर्थी

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  जीवन भर व्यक्ति इसी सोच में उलझा रहता है कि उसका परिवार है, बीबी बच्चे हैं। इनके लिए धन जुटाने और सुख-सुविधाओं के इंतजाम में हर वह काम करने के लिए तैयार रहता है जिससे अधिक से अधिक धन और वैभव अर्जित कर सके। अपने स्वार्थ के लिए व्यक्ति दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए भी तैयार रहता है। जबकि हर व्यक्ति के शरीर में आत्मा रूप में बसा ईश्वर गलत तरीके से, दूसरों को अहित पहुंचाकर लाभ पाने के लिए मना करता है। लेकिन जब व्यक्ति आत्मा की बात नहीं सुनता है तो आत्मा मौन धारण कर लेती है। आत्मा को उस दिन का इंतजार रहता है जब व्यक्ति अर्थी पर पहुंचता है। इस समय व्यक्ति को जीवन का अर्थ और आत्मा की कही बातें याद आती है। लेकिन इस समय पश्चाताप के अलावा कुछ और नहीं बचता है। सब कुछ मिट्टी में मिल चुका होता है। आपने मृत व्यक्ति को बांस की फट्ठियों पर लेकर जाते हुए कभी न कभी जरूर देखा होगा। बांस की फट्ठियों पर जिस पर शव को लिटाया जाता है इसे अर्थी कहते हैं। अर्थी को उठाने के लिए चार कंधों की जरूरत पड़ती है। जब व्यक्ति की अर्थी उठायी जाती है उस समय आत्मा मृत व्यक्ति से कहती है देखो, तुम्हारी यही औकात है।...

जैसा सोचेंगे वैसा ही फल मिलेगा

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  यदि आपका मन प्रसन्न नहीं है तो इसका जिम्मेदार कोई और नहीं है बल्कि आप स्वंय हैं। इसी प्रकार अगर आप सुखी है तो यह भी आपको अपने ही कारण प्राप्त हुआ है। ईश्वर का आपके सुख-दु: ख से कोई संबध नहीं है। ईश्वर तो मात्र कर्म का फल प्रदान करने वाला है। यूं समझ लीजिए कि ईश्वर कमल का पुष्प है। कमल पुष्प जैसे कीचड़ में रहकर भी कीचड़ के गुण दोष से प्रभावित नहीं होता, उसी प्रकार ईश्वर सब में और सब के बीच में रहकर भी किस से न तो मित्रता करता है और न शत्रुता। आप जैसा करेंगे और जैसा चाहेंगे वैसे ही आपके आस-पास का वातावरण तैयार कर देगा।   हस्तरेखा विज्ञान भी भविष्य को जानने का एक माध्यम है। लेकिन अगर आप अपने हाथों को गौर से देखें तो पाएंगे कि समय-समय पर हाथों की रेखाओं में परिर्वतन हो रहा है। यह परिर्वतन आपके कर्म और व्यवहार के अनुरूप होता है। इसलिए अगर आप सोचते हैं कि एक बार जो किस्मत में लिखकर आ गया है ऐसा होना तय है तो मन से इस धारणा को निकाल दीजिए। अगर ऐसा होता है तो ज्योतिषशास्त्र  से सिर्फ भविष्य देखा जा सकता था। लेकिन ज्योतिषशास्त्रों में भविष्य देखने के साथ ही साथ उपाय भी बताये जात...

ससुर ने बहुओं से पूछा “दिन कौन-से अच्छे होते हैं? सबसे छोटी बहू ने दिया सबसे सटीक जवाब

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  उज्जैन.  अगर मन में संतोष है तो कम संसाधनों में भी सुखी रहा जा सकता है नहीं तो पूरी दुनिया की दौलत भी आपको सुखी नहीं बना सकती।  छोटी बहू की समझदारी से खुश हुए ससुर ससुर ने अपनी 4 बहुओं से एक ही सवाल पूछा- दिन कौन से अच्छे? एक बहू ने बारिश के दिनों को अच्छा बताया कि दूसरी ने ठंड के दिनों को, सबसे छोटी बहू का जवाब सुनकर ससुर बहुत खुश हुए। किसी गांव में एक सेठ रहता था। उसके चार बेटे थे। चारों ही बहुत आज्ञाकारी और मेहनती थे। सेठ भी उनकी तरक्की देखकर बहुत खुश होता था। सेठ ने अच्छे परिवारों की लड़की देख कर उनकी शादी भी कर दी। इस तरह उनका परिवार हंसी-खुशी से रहने लगा। एक दिन सेठ ने सोचा कि मेरे सभी बेटे तो समझदार है, क्यों न आज बहुओं की परीक्षा ली जाए। ये सोचकर सेठ ने अपनी चारों बहुओं को बुलाया और सभी से एक ही प्रश्न पूछा। प्रश्न ये था कि “दिन कौन से अच्छे?”  सेठ की बहुएं समझ गई कि ससुरजी हमारी परीक्षा ले रहे हैं। सबसे बड़ी बहू ने कहा कि “दिन तो बारिश के अच्छे होते हैं, क्योंकि बारिश न हो तो फसल नहीं पकेगी और पानी की भी कमी हो जाएगी। लोग पानी के बिना जी नहीं पाएंगे।” अपनी ब...

सुखी रहना है तो ईश्वर से शिकायत न करें

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  इंसानों की एक सामान्य आदत है कि तकलीफ में वह भगवान को याद करता है और शिकायत भी करता है कि यह दिन उसे क्यूं देखने पड़ रहे हैं। अपने बुरे दिन के लिए इंसान सबसे ज्यादा भगवान को कोसता है। जब भगवान को कोसने के बाद भी समस्या से जल्दी राहत नहीं मिलती है तो सबसे ज्यादा तकलीफ होती है। इसका कारण यह है कि उसे लगता है कि जो उसकी मदद कर सकता है वही कान में रूई डालकर बैठा है। इसलिए महापुरूषों का कहना है कि दुख के समय भगवान को कोसने की बजाय उसका धन्यवाद करना चाहिए। इससे आप खुद को अंदर से मजबूत पाएंगे और समस्याओं से निकलने का रास्ता आप स्वयं ढूंढ लेंगे। भगवान किसी को परेशानी में नहीं डालते और न ही वह किसी को परेशानी से निकाल सकते हैं। भगवान भी अपने कर्तव्य से बंधे हुए हैं। भगवान सिर्फ एक जरिया हैं जो रास्ता दिखाते हैं चलना किधर है यह व्यक्ति को खुद ही तय करना होता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में इस बात को खुद स्पष्ट किया है।    आधुनिक युग के महान संत रामकृष्ण का नाम आपने जरूर सुना होगा। ऐसा माना जाता है कि मां काली उन्हें साक्षात दर्शन देती थी और नन्हें बालक की तरह रामकृष्ण को दुलार क...

उपाय भी ठीक से हो

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  एक सास ने बहू से कहा, 'बहूरानी! मैं अभी बाहर जा रही हूं। एक बात का ध्यान रहे, घर में अंधेरा न घुसने पाए। बहू बहुत भोली थी। सास चली गई, सांझ होने को आई। उसने सोचा कि अंधेरा कहीं घुस न जाए, सारे दरवाजे बंद कर दिए। सब खिड़कियां बंद कर दीं। दरवाजे के पास लाठी लेकर बैठ गई। सोचा- दरवाजा खुला नहीं है, कोई खिड़की खुली है, कहीं भी कोई छेद नहीं। आएगा तो दरवाजा खटखटाएगा, लाठी लिए बैठी हूं, देखती हूं कैसे अन्दर आएगा। पूरी व्यवस्था कर दी। अंधेरा गहराने लगा। सोचा, कहां से आ गया! कहीं भी तो कोई रास्ता नहीं है। हो न हो दरवाजे से ही आ रहा है। अन्धकार को पीटना शुरू कर दिया। काफी पीटा कि निकल जाओ मेरे घर से! मेरी सास की मनाही है कि तुम्हें भीतर घुसना नहीं है! खूब लाठियां बजाई। लाठी टूटने लगी। हाथ छिल गए। लहूलुहान हो गए। अंधेरा तो नहीं गया। परेशान हो गई।   सास आई। दरवाजा खोला। कहा, यह क्या किया? मैंने कहा था कि अंधेरे को मत आने देना घर में। वह बोली, 'देखो, मेरे हाथ देख लो। लहूलुहान हो गए। लाठी टूट गई। मैंने बहुत समझाया, बहुत रोका, पर इतना जिद्दी है कि माना ही नहीं और यह तो घुस ही गया। सास ने सि...

लोग क्या कहेंगे

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  ललित उपमन्यु ‘फोन बजा। हां, बेटी बोलो’ उधर से कजरी फोन पर ही फूट पड़ी। ‘सब बिखर रहा है बाबूजी। हम गलत फंस गए हैं। ये लोग बड़े जरूर हैं लेकिन बड़प्पन बिलकुल नहीं हैं इनमें। इतनी निर्ममता। न चीखों का असर, न चोंटों का। पति इतना क्रूर कैसे हो सकता है। बिना कुसूर की यातना। रोज मदिरापान… रोज पिटाई। इतने कपटी कि एक और स्त्री..., कहते हुए कजरी की आवाज हलक में अटक गई। घर वाले भी इन्हीं का समर्थन करते हैं। तुम्हें इसी माहौल में रहना होगा। नहीं तो जाओ अपने बाप के घर। करोड़ों की दौलत लेकर नहीं आई हो। इन्हें नौकरानी चाहिए थी।‘ वो धाराप्रवाह बोले जा रही थी। लगा ‘आंसुओं के बांध का सब्र टूट गया है।’ वो यह भी भूल गई कि उसकी बातें बाबूजी पर क्या कहर ढाएंगी। बाबूजी के पैरों से जमीन खिसक गई। वे इतना ही कह पाए-‘बेटी मुझे कुछ-कुछ खबरें मिल रही थीं तुम्हारी परेशानियों की। अपने को संभालो। मैं हूं ना। सब ठीक कर लूंगा। आता हूं, तुम्हारे ससुराल। बात करूंगा समधी जी से। ऐसा क्या गुनाह कर दिया मेरी बेटी ने जो इतने सितम ढा रहे हैं।’ ‘नहीं, आप कोई बात मत करना। नहीं तो इनकी यातना और बढ़ जाएगी। आप इन लोगों को नही...

ईमानदारी

  नमन-मगसम पटल             ईमानदारी का हम क्या अचार डालेंगे, पड़े अकेले किस-किस से फफुंद पालेंगे/    इस पर चलना विरलों का,    ईमान-धरम हो जाता है/    इस जग में  चलना अब,    खाण्डे धार कहाता है// बेईमान की जय बोलेंगे, ईमान फजीहत कर डालेंगे/ ईमानदारी का हम क्या अचार डालेंगे, पड़े अकेले किस-किस से फफुंद पालेंगे//    बेईमानी के सौ हथकण्डे,    ईमान सड़क पर चलता है/    बेईमान विलासी जीवन भोगे,    ईमानदार हाथ मलता है// सच्चाई फहरी धरम ध्वजा, बेईमान को जेल में डालेंगे/ ईमानदारी का हम क्या अचार डालेंगे, पड़े  अकेले किस-किस से फफुंद पालेंगे//

पप्पू और उसकी गर्लफ्रेंड को रोककर पुलिसवाला बोला...

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  एक लड़का इंटरनेट पर सर्च करते हुए लिखता है 'हाऊ टु इंप्रेस अ गर्ल इफ वीक इन इंग्लिश जवाब मिला...ओए, सुधर जाओ, खेती बाड़ी कर लेओ जेमे फायदा, मोड़ी पटावे में कछु नाई धरो, जायदाद बिक जेहे जे चक्करन मा, और जूता पडि़हैं, वै अलग। 2. कुछ तो था उसके होठों में, पर न जाने क्यों शर्माती थी। एक दिन वो खुलकर हंसी तो पता चला कि मोहतरमा तंबाकू खाती थी। 3. गर्लफ्रेंड की शादी का कार्ड पप्पू को मिला। पप्पू ने कहा: गर्लफ्रेंड थी तो क्या हुआ, जाऊंगा तो मैं जरूर. प्यार अपनी जगह, बटर चिकन अपनी जगह। 4. पप्पू, अपनी गर्लफ्रेंड का हाथ अपने हाथ में लिए बाजार में घूम रहा था। तभी एक पुलिस वाले ने रोककर बोला- कोरोना काल में दो गज की दूरी और मास्क जरूरी है। पप्पू: अरे, सर। इसका हाथ छोड़ते ही, ये किसी दुकान में घुस जाती है, इसीलिए पकड़ा हुआ है। फिर खर्चे बढ़ जाते हैं।      

बाल संस्कार"

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  नमन-मगसम पटल कोटा डालो संस्कार बालकों में, दो आगे बढ़ने की हर सुविधा/ जीवन के हवन कुण्ड खातिर, खुद एकत्रित कर लाए समिधा//    आदिकाल गुरू कुल में बालक,    विद्याध्ययन को आते थे/    गुरू माई के आदेश से वे,    जंगल से ईंधन लाते थे// याचक नां बन स्वयं सिद्ध हों, पराश्रिता देती है दुविधा/ जीवन के हवन कुण्ड खातिर, खुद एकत्रित कर लाए समिधा//    ईशार्चन और पूजन सामग्री,    बालक चुन कर लाते थे/    उनकी योग्यतानुसार गुरू देव,    सपने साकार कराते थे// विदाई के क्षण गुरू दक्षिणा दें, प्रस्थान में जाता गला रूंधा/ जीवन के हवन कुण्ड खातिर, खुद एकत्रित कर लाए समिधा//  

तू उनके गांव का है, इसलिए तेरा काम पहले...!!

लड़का - क्या तुम मेरी सैलरी से गुजारा कर लोगी...? लड़की- मैं तो कर लूंगी पर आपका क्या होगा...?   सिपाही - चल भाई, तेरे फांसी का समय हो गया। कैदी - पर मुझे तो फांसी 20 दिन बाद होने वाली थी! सिपाही - जेलर साहब कह कर गए हैं कि तू उनके गांव का है, इसलिए तेरा काम पहले...!!  

होशियार

      पप्पू 1st अप्रैल के दिन बस में चढ़ा... कंडक्टर ने टिकट माँगा , तो पप्पू 10 रुपये देकर टिकट ले लिया ,, फिर हंसते हुए बोला-अप्रैल फूल , मेरे पास तो बस का पास है। एक लड़की की शादी हो रही थी... 2. शादी में दुल्हन का एक्स Žवॉयफ्रेंड भी आया हुआ था। दुल्हन के पापा: आप कौन हैं? एक्स वॉयफ्रेंड: जी, मैं सेमीफाइनल में आउट हो गया था, आज फाइनल देखने आया हूं। 3. पप्पू पहली बार ट्रेन में सफर करने वाला था। तभी घोषणा हुई- ''बिना टिकट सफर करनेवाले यात्री होशियार इसी बीच पप्पू बोल पड़ा- अरे वाह! बिना टिकट सफर करनेवाले यात्री होशियार और हमने टिकट ली तो हम बेवकूफ !!!

सिर दर्द

पति ने पत्नी का हालचाल जानने के लिए टाइप किया, अब कैसा है सिरदर्द? लेकिन टाइपो एरर हो गया और टाइप हो गया कैसी हो सिरदर्द पति तब से लापता…

भगवान का स्वरूप है महिलायें

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  एक दार्शनिक ने कहा है कि ‘‘भगवान हर जगह नहीं पहुच सकते, इसलिए उन्होंने माँ बना दी‘‘ मातृत्व महिलाओं को भगवान की असीम कृपा से मिलता है। माँ को विश्वभर में स्नेह से पूजा जाता है। माँ तथा बच्चे के बीच अतुल्नीय रिश्ता होता है। पूरे भ्रमाण्ड में माँ एक जैसी पाई जाती है तथा यह अन्य सभी प्राणियों के मुकाबले कहीं ज्यादा सबल, सशक्त, प्रबल तथा तेज होती है। एक महिला होने के नाते मुझे माँ बनने का असीम आनन्द अनुभव हुआ है। माँ बच्चे के बीच के अदभूत रिश्ते के आनन्द को पाने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मेरी नजर में मातृत्व बिना किसी शर्त के माँ और बच्चे के बीच असीम तथा निःस्वार्थ प्यार को दर्शाता है जिसमें कोई चाहत नहीं होती। भगवान की कृपा से मुझे 16 वर्ष की छोटी आयु में ही बेटी का वरदान मिला तथा मैं बेटी नीलोफर की माँ बनी। कम  उम्र में माँ बनने के काफी फायदें भी होते है। हम दोनों माँ बेटी एक दोस्त की तरह बड़ी हुई तथा बहनों की तरह व्यवहार करती थी। अपने बच्चे के साथ-साथ बडे़ होने का बहुत ही सुखद अनुभव होता है। मुझे उन दोनों में अपनी लन्दन यात्रा आज भी रोमांचित लगती है जब हम दोनों दोस्त की ...