स्वच्छ दूध उत्पादन कर बढायें आमदनी-प्रो. राठौड़

 


 भीलवाड़ा हलचल।  कृषि विज्ञान केन्द्र,  द्वारा विश्व दूध दिवस पर जिले के किसानों हेतु आॅनलाईन व्याख्यान एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के माननीय कुलपति प्रोफेसर नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दूध की महŸाा को जन-जन तक पहुँचाना एवं दूध की उत्पादकता को बढ़ावा देना है। राजस्थान पशुधन सम्पदा के क्षेत्र में देश के कई राज्यों से अग्रणी है। यहाँ देश की कुल पशुधन सम्पदा का 11 प्रतिशत पशुधन पाया जाता हंै जिनमें ऊँट एवं बकरियाँ सर्वाधिक है। राजस्थान का भैंस पालन में दूसरा एवं भेड़ पालन में तीसरा स्थान है।
 प्रोफेसर राठौड़ ने बताया कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने के सपने को तभी साकार किया जा सकता है जब किसान भाई नवीनतम कृषि पद्धतियों के साथ-साथ उन्नत पशु प्रबन्धन तकनीकों का भी उपयोग करें। दूध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखने के बावजूद भी वैश्विक परिदृश्य में भारत की स्थिति नगण्य है। इसका प्रमुख कारण दूध का अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा न उतर पाना है। हैं।
माननीय कुलपति ने बताया कि राजस्थान जैसे विशाल भू-भाग वाले प्रदेश के किसानों के लिए तो पशुधन आर्थिक प्रगति का मूल आधार है। पशुपालन न केवल लोगों की नियमित आमदनी में सहयोग करता है अपितु प्राकृतिक आपदाओं एवं विपत्तियों में सर्वोत्तम वित्तीय सुरक्षा भी प्रदान करता है। अतः वैज्ञानिकों कोे उत्तम पशु प्रजनन हेतु और अधिक अनुसंधान पर बल देना चाहिए। राज्य में देश के कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 12.71 प्रतिशत दुग्ध, 31.43 प्रतिशत ऊन एवं 3.24 प्रतिशत मांस का उत्पादन होता है। राज्य के सकल घरेलू उत्पादन में पशुुधन व्यवसाय का लगभग 8 प्रतिशत योगदान है। राज्य का  ऊन उत्पादन की दृष्टि से देश में पहला और दुग्ध उत्पादन में दूसरा स्थान है। 
निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर, डाॅ. सम्पत लाल मून्दड़ा ने बताया कि यह दिवस संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय दिवस है जो वैश्विक भोजन के रूप में दूध के महत्त्व को पहचानता हैं। डाॅ. मून्दड़ा ने बताया कि श्वेत क्रान्ति के पितामह वर्गीज कुरियन के प्रयासों से दूध की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई किन्तु अभी-भी प्रदेश में दूध उत्पादन बढ़ाने की काफी संभावनाएँ हैं।
    कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डाॅ. लोकेश गुप्ता, सह-आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, पशु उत्पादन विभाग, एवं नाॅडल अधिकारी, आई.सी.ए.आर. राजस्थान कृषि महाविद्यालय, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने उन्नत पशु प्रबन्धन के महत्त्व पर विस्तृत चर्चा एवं प्रस्तुतिकरण द्वारा बताया कि राजस्थान में गिर, राठी, थारपारकर व कांकरेज गायें, नागौरी बैल, मालानी घोड़े, बीकानेरी एवं जैसलमेरी ऊँट, जखराना, सिरोही एवं मारवाड़ी नस्ल की बकरियाँ तथा चोकला, मारवाड़ी, सोनाडी एवं बीकानेरी नस्ल की भेड़ें प्रमुख रूप से पाली जाती हैं। प्रदेश के पश्चिमी रेगिस्तानी मरूक्षेत्र में भूमिहीन किसान एवं खेतीहर मजदूर एवं खासतौर से लघु एवं सीमान्त कृषकों के लिए जीविकोपार्जन का एक महत्त्वपूर्ण आधार पशुपालन है।
डाॅ. गुप्ता ने बताया कि डेयरी उद्योग हेतु उन्नत तथा उत्तम नस्ल के पशुु पालने की आवश्यकता प्रतिपादित की। नवजात बछडों के सन्दर्भ में गाय अथवा माँ द्वारा बछड़े को चाटने देना एवं ब्याने के 2 घन्टे बाद बछड़े को खीस पिलाना आवश्यक बताया और उन्नत पशु प्रबन्धन तकनीकों की जानकारी देते हुए सुअर पालन, कुक्कुट पालन, खरगोश पालन, बटेर पालन आदि सहायक व्यवसायों को भी अपनाने की सलाह दी। 
डाॅ. गुप्ता ने डेयरी विकास की प्रमुख बाधाओं जैसे दुधारू पशुओं की अनुपलब्धता, तकनीकी ज्ञान का अभाव, कमजोर बिक्री व्यवस्था, विभिन्न संस्थाओं में आपसी तालमेल की कमी, पशु उत्पादों के मूूल्य संवर्धन एवं प्रसंस्करण हेतु लघु उद्योगों की कमी आदि पर भी विशेष बल दिया और पशुधन उत्पादन के विभिन्न घटकों जैसे पशुओं का पोषण, पशुओं का प्रजनन, स्वास्थ्य की देखभाल, पशुओं में रोग नियंत्रण, पशुओं का तकनीकी प्रबन्धन, पशु उत्पादों का विपणन आदि पर विस्तृत चर्चा की।
    जिले के प्रगतिशील किसान रामजी मीणा ने प्रताप धन मुर्गिर्यों की उपलब्धता तथा राजकुमार सेन ने डेयरी व्यवसाय हेतु राज्य सरकार द्वारा देय अनुदान एवं योजनाओं की जानकारी प्राप्त की। डाॅ. के. एल. जीनगर, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, भीलवाड़ा ने उन्नत पशु प्रबन्धन के महत्त्व पर जानकारी दी। कृषि विज्ञान केन्द्र, भीलवाड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डाॅ. सी. एम. यादव ने मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता, वैज्ञानिकों एवं किसानों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लतिका व्यास, प्रोफेसर, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने किया। वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. के. सी. नागर ने भाग लेने वाले किसान भाईयों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में 47 कृषकों एवं वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

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