दुख से कोई सरोकार नहीं

 


एक बार गुर्जर नरेश सम्राट कुमार पटल के गुरु आचार्य हेमचंद्र राजधानी पाटण लौट रहे थे। रास्ते में विश्राम के लिए वे एक गरीब विधवा स्त्री की झोपड़ी में ठहर गए। स्त्री ने बड़े मन से उनकी सेवा की। जब आचार्य हेमचंद्र वहां से जाने लगे, तो उस विधवा ने उन्हें अपने हाथ से बुनी सूत की एक चादर भेंट की। चादर को ओढ़ कर आचार्य राजधानी पाटण पहुंचे। सम्राट पटल गुरु के शरीर पर एक साधारण-सी सूत की चादर देखकर क्रोधित हो गए और बोले, ‘गुरुजी, यह साधारण-सी चादर आपके शरीर पर शोभा नहीं देती। इसे उतार कर मूल्यवान दुशाला ओढ़ लीजिए।’ आचार्य हेमचंद्र बोले, ‘अरे, यह शरीर तो अस्थि और मांस-मज्जा का ढेर है। चादर ओढ़ने से इसका क्या बिगड़ जाएगा और कीमती दुशाला ओढ़ने से क्या संवर जाएगा?’ सम्राट बोले, ‘गुरुदेव, आप तो शरीर के सुख और शोभा से निर्लिप्त हैं, किंतु मुझे यह देखकर लज्जा आती है।’ आचार्य बोले, ‘राजन, तुम शायद नहीं जानते कि इस चादर के पीछे अनेक गरीबों की मेहनत छुपी है। इसे ओढ़कर मुझे लज्जा नहीं, गर्व होता है। लेकिन तुम्हें अपने सुख के आगे उनके दुख से कोई सरोकार नहीं है।’ सम्राट लज्जित हो गए और आचार्य से माफी मांगी।

निशा

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