विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष अक्टूबर में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में नागरिकता संशोधन कानून (सिटिजेनशिप अमेंडमेंट एक्ट - सीएए) के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी के शाहीन बाग में विरोध-प्रदर्शन को "अवैध" बताया था। इसके बाद कुछ कार्यकर्ताओं ने कोर्ट से इस फैसले की समीक्षा करने की गुहार लगाई थी। लेकिन, आज उनकी उम्मीदों को उस समय झटका लगा जब कोर्ट ने यह कहते हुए उनकी समीक्षा-याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया कि "विरोध करने का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता है"। जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की तीन जजों वाली पीठ ने अपने पूर्व के फैसले पर कायम रहते हुए समीक्षा-याचिका खारिज कर दी।

कनीज फातिमा और 11 अन्य लोगों द्वारा दायर समीक्षा-याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विरोध करने का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता है। कुछ सहज विरोध हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा करके किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों को प्रभावित नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने ने खुली अदालत में समीक्षा याचिका की मौखिक सुनवाई के उनके अनुरोध को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हमने पहले के न्यायिक घोषणाओं पर विचार किया है और अपनी राय भी दर्ज की है कि संविधान हमें विरोध-प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने का अधिकार तो प्रदत्त करता है, लेकिन साथ ही यह कुछ कर्तव्यों के प्रति दायित्वों का भी बोध कराता है।

गौरतलब है कि अक्टूबर के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि विरोध-प्रदर्शन किसी निर्दिष्ट स्थान पर ही किया जा सकता है अगर अगर ऐसा नहीं होता है तो पुलिस के पास निर्दिष्ट स्थानों से इतर विरोध-प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों को हटाने का अधिकार है। एक महत्वपूर्ण अवलोकन करते हुए कोर्ट ने तब कहा था कि शाहीनबाग विरोध अब शायद महिलाओं की एकमात्र और सशक्त आवाज नहीं रह गया है, जो अब स्वयं विरोध समाप्त करने की क्षमता भी नहीं रखती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि यह कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता कि जब भी मन करे तो विरोध के लिए अनिश्चित संख्या में लोग इकट्ठा हो जाएं। इस बाबत कोर्ट ने उपनिवेशवादियों के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने के तरीके और लोकतांत्रिक तरीके से असंतोष की अभिव्यक्ति के बीच अंतर का भी हवाला दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा था कि भारत में लोकतंत्र की बुनियाद तो उसी समय पड़ गई थी जब स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विरोध का बीज गहरा बोया गया था। अंतत: विरोध रूपी यह फूल लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया।

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