कितना बदल जाएगा इंटरनेट

 


 

पिछले कुछ दिनों से दुनियाभर में वेब 3.0 की चर्चा है। यह वल्र्ड वाइड वेब की अगली पीढ़ी है, जो आने वाले समय में वेब 2.0 की जगह ले सकती है। वेब 3.0 के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें डाटा पर नियंत्रण किसी कारपोरेट या सरकार के बजाय खुद लोगों का होगा। साथ ही, सिंगल एकाउंट के जरिए यूजर इंटरनेट मीडिया, ईमेल, शापिंग साइट आदि को एक्सेस कर पाएंगे। आइए जानते हैं आखिर क्या है वेब 3.

कुछ दिनों से इंटरनेट की दुनिया में मेटावर्स के बाद ‘वेब 3.0’ की काफी चर्चा हो रही है। इस नये शब्द ने इंटरनेट की दुनिया को उत्साहित कर दिया है। अब आप सोच रहे होंगे कि वेब 3.0 वास्तव में है क्या? यह वेब 2.0 से आगे की दुनिया है, जिसका हम अभी उपयोग कर रहे हैं। इंटरनेट के इस अगले युग के बारे में कहा जा रहा है कि आपके पास प्रत्येक मंच के लिए अलग-अलग इंटरनेट एकाउंट की जरूरत नहीं होगी, बल्कि एक इंटरनेट एकाउंट होगा, जिससे आप फेसबुक (अब मेटा), ट्विटर, गूगल, शापिंग साइट्स आदि को एक्सेस कर पाएंगे। साथ ही, आपकी गतिविधियों को उसी डिजिटल बैकबोन पर सूचीबद्ध किया जा सकता है, जो बिटकाइन-ब्लाकचेन जैसी क्रिप्टोकरेंसी का समर्थन करता है। इसकी अच्छी बात यह होगी कि इसे किसी केंद्रीय शक्ति द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा, बल्कि डाटा पर खुद यूजर्स का कंट्रोल होगा। वेब 3 एप्लीकेशन अक्सर एथेरियम नामक तकनीक पर आधारित होते हैं।

क्या है वेब 2.0 और वेब 3.0 :

मार्च 2020 में जब महामारी की शुरुआत हुई थी, उसके बाद से आनलाइन सेवाएं रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न अंग बन गई हैं। लोग खरीदारी करते हैं, खाना आर्डर करते हैं, फिल्में देखते हैं, इंटरनेट मीडिया का उपयोग करते हैं, यहां तक कि आनलाइन सामान भी खरीदते हैं। अधिकांश आनलाइन सेवाएं, जैसे- ईमेल, इंटरनेट और शापिंग क्लाउड पर चलती हैं। इसमें रिमोट डाटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग सेवाएं इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध हैं। अमेजन वेब सर्विसेज, गूगल क्लाउड, माइक्रोसाफ्ट अजुरे व अन्य मंच क्लाउड सेवाएं प्रदान करती हैं। इसका मतलब यह है कि कोई भी जानकारी जो यूजर ऐसे प्लेटफार्म पर साझा करते हैं, उन्हें आनलाइन सेवा द्वारा उपयोग किए जाने वाले क्लाउड प्रोवाइडर के पास स्टोर किया जाता है। इंटरनेट के इस वर्जन को वेब 2.0 कहा जाता है, जिसका हम अभी उपयोग कर रहे हैं।

 

वेब 3.0 इंटरनेट का अगला वर्जन है, जहां सेवाएं ब्लाकचेन पर चलेंगी। यदि इन दोनों की तुलना करें, तो जहां क्लाउड प्लेटफार्म या आन-प्रिमाइसेस इंफ्रास्टक्चर वेब 2 सेवाओं की नींव तैयार करते हैं, वहीं वेब3 में सभी सेवाएं ब्लाकचेन पर बनाई जाती हैं। इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि क्लाउड को अमेजन, गूगल और माइक्रोसाफ्ट जैसे दिग्गजों और आन-प्रिमाइसेस कंपनियों/संगठनों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह सेंट्रलाइज्ड यानी केंद्रीकृत होता है। वहीं वेब 3.0 में ब्लाकचेन के जरिए डाटा पूरे नेटवर्क में वितरित किया जाता है। कोई भी डाटा या सूचना का स्वामी नहीं होता है। वेब 3.0 डीसेंट्रलाइज्ड यानी विकेंद्रीकृत इंटरनेट है, जो एक सार्वजनिक ब्लाकचेन पर चलता है, जिसका उपयोग क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन के लिए भी किया जाता है। यह केंद्रीकृत इंटरनेट यानी वेब2.0 से अलग होगा, जहां मेटा(पहले फेसबुक), गूगल, अमेजन और एपल जैसी शीर्ष कंपनियां यूजर्स डाटा का बड़ा हिस्सा रखती हैं। क्रिप्टोकरेंसी के लिए वेब3 महत्वपूर्ण है। लेकिन यह इससे कहीं बढ़कर है। वेब 3 का सबसे अच्छा उदाहरण एनएफटी यानी नान-फंजिबल टोकन हैं, जिन्हें क्रिप्टो सिक्कों का उपयोग करके खरीदा जाता है। अब इस क्षेत्र में अमिताभ बच्चन, सलमान खान से लेकर बहुत सारे लोग एक्टिव हो रहे हैं।

 

क्या बदलेगा इससे:

यह समझने के लिए कि वेब3.0 क्यों महत्वपूर्ण है, इससे पहले इंटरनेट के पिछले वर्जन यानी वेब1 और वेब2 के उद्देश्य को समझना आवश्यक है, जो 1990 के बाद से लेकर आज तक चल रहे हैं। वेब 1 की शुरुआत स्टेटिक या पर्सनल वेब पेजों से हुई थी। पिछली सदी के आखिरी दशक की शुरुआत में लोग इंटरनेट पर नये-नये थे। उस दौरान इंटरनेट पर स्टेटिक यानी स्थिर पेज ज्यादा थे। बातचीत की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। फिर 2000 के बाद वेब 2.0 आया और इसके साथ फेसबुक, अमेजन जैसी बड़ी कंपनियां आईं। यह दौर यूजर जेनरेटेड कंटेंट का है। अभी वेब 2.0 ही चलन में है। जाने या अनजाने जो यूजर वीडियो और तस्वीरें खोजते हैं, खरीदारी करते हैं या चीजों को अपलोड करते हैं, वे बड़ी मात्रा में कंटेंट या डाटा उत्पन्न करते हैं। यह सारा डाटा उन कंपनियों के सर्वर में स्टोर किया जाता है, जिनसे लोग इंटरैक्ट करते हैं। इसका मतलब है कि बिचौलिये यूजर्स डाटा के संरक्षक बन जाते हैं और विज्ञापन के माध्यम से लाभ कमाते हैं। स्टेटकाउंटर के आंकड़ों के मुताबिक, इंटरनेट मीडिया में फेसबुक की 72 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है। सामग्री बनाने में जितना अधिक समय व्यतीत होगा, कंपनियां उतना ही अधिक डाटा एकत्र कर सकती हैं, जिससे उसे अपने एआइ एल्गोरिदम और विज्ञापन इंजन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। यह कंपनियों के लिए प्रमुख राजस्व माडल भी है। वेब 2.0 गोपनीयता और साहित्यिक चोरी जैसी समस्याएं लाता है, लेकिन वेब 3.0 में यह इतना आसान नहीं होगा।

 

कैसे होगा समस्याओं का हल

इन दिनों इंटरनेट की दुनिया में साहित्यिक चोरी काफी प्रचलित है। मूल सामग्री को कापी करना और उसे इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट करना आम है। अमेरिका के टेक रिपोर्टर केसी न्यूटन ने जब सबसे अधिक देखे जाने वाले शीर्ष 19 पोस्टों का विश्लेषण किया, तो यह पाया कि इनमें से केवल चार मूल थे, जबकि बाकी साहित्यिक चोरी थे। वेब 3 के जरिए इस मुद्दे को हल करने में मदद मिल सकती है। न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता मैट ड्रायहस्र्र्ट कहते हैं कि अभी कुछ कंपनियां इंटरनेट को कंट्रोल करती हैं, लेकिन वेब 3 ऐसे नये इंटरनेट नेटवर्क, सर्च इंजन आदि उपलब्ध कराएगा, जिस पर कुछ कंपनियों का नियंत्रण नहीं होगा।

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