प्रदेश में शिक्षक तबादलो पर उठ रहे सवाल ! शिक्षक ने सरकार से की लिखि‍त मांग

 


राजसमन्द (राव दिलीप सिंह)

आदि अनादि काल से असंगठित वर्ग हमेशा से ही शोषित और पीड़ित होता चला आया है तथा राज करने वालों ने उनके हितों और हकों को छीनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, ऐसे में विभिन्न विभागों में विभागों में यूनियन एवं संगठनों की महती आवश्यकता रहती है । लेकिन, जब खेत ही बाढ़ को खाए, तो खेत की रखवाली कौन करेगा ?ऐसा ही वाकिया देखने में मिल रहा है कि राजस्थान प्रदेश में शिक्षा, शिक्षार्थी एवं शिक्षकों के हितो के लिए सैकड़ों की तादाद में बने शिक्षक संघ, जो कि प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की गोद में खेलते फलते फूलते नजर आते हैं, अपनी विषैली विचारधारा को शिक्षण संस्थाओं की मानव शक्ति पर थोपने की भरपूर करते देखे जा सकते हैं जिससे शिक्षण संस्थानों में शिक्षा अनुकूल माहौल निर्मित नहीं हो पा रहा है ।

 इतना ही नहीं प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में सक्रिय इन शिक्षक संघो के आपसी हितों को लेकर, गठबंधन भी उजागर हुए हैं जैसे कि हाल ही में प्रदेश में तबादला नीति निर्माण की चर्चाएं जोरों पर रही और तबादला नीति निर्माण में सत्ता समर्थित तथा कुछ अन्य शिक्षक संघों की राय भी ली गई जिसमें इन शिक्षक संघों ने अपने बचाव के लिए तबादला नीति का पक्ष लेने से मना कर दिया और एक बार नीति के स्थान पर नेताओं की अनुशंसा से तबादले होने का उद्योग चलने का अंदेशा है । वैसे तबादला नीति निर्माण का राग लोकतंत्र की स्थापना के बाद प्रदेश में राज करने वाली प्रमुख राजनीतिक पार्टियों नेखूब अलापा है लेकिन, इन शिक्षक संघो एवं राजनीतिक पार्टियों की नियत में खोट के चलते, एक बार नीति हारी और नेतागिरी प्रभावी रही है। जिसके चलते प्रदेश के लाखों लाख शिक्षक तथा उनके परिवारजन ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं ।

 वही प्रदेश में सैकड़ों की तादाद में विभिन्न नामों से पंजीकृत या अपंजीकृत शिक्षक संघ जो अपने संगठन की संपूर्ण गतिविधियां, शिक्षकों से दबाव एवं प्रभाव पूर्वक ली गई सहयोग राशि, सदस्यता शुल्क राशि अथवा चंदे की राशि से संपन्न करते हैं और राजनीतिक पार्टियों को अपना वोट बैंक बताकर या गिनाकर अपनी मांगे मंगवाते हैं ।वहीं राजनीतिक पार्टियां इन शिक्षक संघो से जुड़े विशेषकर जिला एवम प्रदेश पदाधिकारियों को ज्यादा तवज्जो देते हुए, शिक्षा, शिक्षार्थी एवं शिक्षको के हितों की वाजिब मांगों पर चर्चाएं ना करके राजनीतिक चर्चाएं करते नजर आते हैं तथा अपनी मीटिंग के फोटो सोशल मीडिया अथवा इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया पर वायरल करते रहते हैं । इन शिक्षक संघ व राजनीतिक पार्टियों के निजी स्वार्थ हितों से जुड़े गठबंधन व मिलीभगत के कारण, आज तक भी प्रदेश में शिक्षारूपी सूर्य का उजियारा होना अभी बाकी है । 

लंबे अरसे से यह देखने में आया है कि इन शिक्षक संघो के जिला कार्यकारिणी एवं प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारियों के बीच आपस में इस प्रकार का गठबंधन है कि एक दूसरे शिक्षक संघ के पदाधिकारियों की अपने अनुकूल सत्ता आने पर स्थानांतरण या तबादले नहीं करवाए जाएंगे और उनके द्वारा किए गए गलत कार्यों पर पर्दा डालेंने में साथ निभायेंगे । यह गठबंधन उजागर होने पर प्रदेश के लाखों शिक्षकों का इन संगठनों से मोहभंग होता जा रहा है और और इन शिक्षक संघो व संगठनों से जुड़ने या सदस्यता लेने का सामूहिक बहिष्कार करने की ठान ली है  और यदि यह सदस्यता के लिए दबाव में प्रभाव का प्रयोग करेंगे तो इनकी शासन प्रशासन को लिखित में शिकायत भी दी जाएगी तथा शिक्षण संस्थाओं से इन्हें शिक्षक संघों को मुक्त किया जाएगा  ताकि प्रदेश की शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा अनुकूल वातावरण निर्माण हो सके तथा आपसी समरसता का भाव उत्पन्न हो सके ।

शिक्षक हितों के लिए संघर्षरत शिक्षक नेता कैलाश सामोता  ने प्रदेश की संवेदनशील सरकार से लिखित में यह मांग की है कि शिक्षा, शिक्षार्थी एवं शिक्षको हितों के लिए काम करने का झूठा दावा करने वाले इन सैकड़ों शिक्षक संघो की पिछले 20 वर्षों की, किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा इनकी समस्त गतिविधियों, कार्यालयों, आय व्यय, बैंक खातों, बिल बाउचर की ऑडिट करवाई जानी चाहिए तथा जिन शिक्षक संघों के जो पदाधिकारी ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालयो, जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालयो, संयुक्त निदेशालय कार्यालयो, अथवा शिक्षा निदेशालय, बीकानेर और शिक्षा संकुल जयपुर में प्रतिनियुक्ति पर इन नियमों के विपरीत लंबे समय से  जमे हुए हैं, उन कार्मिकों की सूची उजागर की जानी चाहिए तथा उन्हें उनके मूल पदस्थापन स्थान पर भेजा जाना चाहिए । सामोता ने आरोप लगाया है कि शिक्षा विभाग की जितनी भी सहशैक्षिक गतिविधियां, ट्रेनिंग प्रोग्राम, कैंप, आदि के आयोजन में, शिक्षा विभाग के प्रमुख कार्यालयों में लंबे समय से जमे कार्मिकों की मिलीभगत एवं भ्रष्टाचार के साथ, इन शिक्षक संघों से जुड़े हुए पदाधिकारियों को ही शामिल किया जाता है, जो अन्य शिक्षकों के साथ प्रतिभा, दक्षता एवं कार्य कुशलता के साथ नाइंसाफी है । 

प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सनलिप्त यह शिक्षक संघों के पदाधिकारी राजनीतिक एजेंट के रूप में कार्य करते हैं तथा निर्वाचन आयोग के की मूलभूत कड़ी बूथ लेवल ऑफिसर का ब्रेनवाश कर, अपनी विचारधारा वाली पार्टी के लिए काम करने को बाध्य करते हैं । इसलिए अब वक्त आ गया है कि इन शिक्षक संगठनों, उनके पदाधिकारियों और इनकी संदिग्ध गतिविधियों पर संज्ञान लेकर शिक्षा जैसे क्षेत्र या शिक्षण संस्थानों को इन विषैले शिक्षक संगठनों से मुक्ति दिलाने चाहिए और इनकी संदिग्ध गतिविधियो पर प्रदेश में पूर्णतया प्रतिबंध लगना चाहिए । इन शिक्षक संगठनों में अधिकांश पदाधिकारी, भ्रष्टाचार प्रवृत्ति के, संगीन आरोप में सिद्ध, तंबाकू उत्पाद एवं अन्य नशे के आदि हैं जिनकी कथनी एवं करनी में बहुत अंतर है । शिक्षक संघो से जुड़े लोग संगठनों की आड में चुप कर अपने घर के आस-पास ही नौकरी कर अपने अवैधानिक काले कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं और उन्हें प्रदेश में शिक्षा, शिक्षार्थी  एवं शिक्षकों के हितों से कोई लेना देना नहीं है । वे केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिए संगठनों की आड़ लेते हैं तथा इनके खिलाफ आवाज मुखर करने वाले को ये विधर्मी लोग कूटरचित व मिथ्या आरोपों में फंसाकर प्रताड़ित करने का कार्य करते हैं । इसलिए प्रदेश में इन को संगठनों की संदिग्ध गतिविधियों से शिक्षण संस्थानों को मुक्त किया जाना बेहद ही जरूरी हो गया है ।

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