ऑनलाइन हुई काव्य संध्या

 

भीलवाड़ा (हलचल) । भीलवाड़ा की अग्रणी साहित्यिक संस्था 'नवमानव सृजनशील चेतना समिति' की ओर से विश्व मित्रता दिवस,वरिष्ठ नागरिक दिवस,युवा दिवस,महिला समानता दिवस, स्वतंत्रता दिवस,श्रीकृष्ण व राधा जन्माष्टमी,बलराम जयंती और पर्यूषण के अवसर पर रविवार को कोरोना काल की 8वीं व अनलॉक-3 की द्वितीय ऑनलाइन डिजिटल काव्यसंध्या आयोजित की गई। इस काव्यसंध्या के प्रतीकात्मक मुख्य अतिथि जीपी पारीक एवं विशिष्ट अतिथि इंजी.एसएस गंभीर थे,अध्यक्षता व संचालन संस्था संयोजक डॉ एसके लोहानी ख़ालिस ने किया एवं सरस्वती वंदना लाजवंती शर्मा ने प्रस्तुत की।


संस्था महासचिव कविता लोहानी ने बताया कि डॉ एसके लोहानी ख़ालिस ने काव्यसंध्या का शुभारंभ अपनी ताजातरीन गज़ल 'मुहब्बत जिंदगी को खादबीज सही देती है,मुहब्बत इंसाँ को मुरझाने नहीं देती है,तमाम मजहब खड़ी करते हैं बड़ी दीवारें, नफरत इंसाँ को खिलने नहीं देती है' की प्रस्तुति से किया। अरुण अजीब ने 'आप आए तो हो गई गज़ल', ओम अंकुर ने 'मेरा खुद का एक आन्दोलन है, मैं हर बार नया सिपहसालार बनाता हूँ', डॉ राजमती सुराणा ने गीत 'वाणी का संयम ही जीवन को बनाता है', लाजवंती शर्मा ने गीत 'रामजी के मंदिर में रामजी पधार रहे,इस अवसर पर मीठे गान गाएंगे', सन्तोष जोशी ने 'गीता कविता रामायण कविता,कविता है सब वेद पुराण', सतीश व्यास आस ने 'जब भी मिलना हुआ रुलाके मिले,दर्द अपना सभी छुपाके मिले', पवन गग्गड़ ने 'आशाओं से जियो जिंदगी,अमृतपान करो इसका', एसएस गंभीर ने 'तू अपनी खूबियाँ ढूंढ,कमियां निकालने के लिए लोग हैं ना', ओम उज्जवल ने 'हम दीन-हीन अल्पज्ञों में तुम भक्तिभाव जगा देना,' श्यामसुन्दर तिवाड़ी मधुप ने 'क्रांतिकारी राजगुरु तुम अमर हो गए,आजादी के हवनकुण्ड में प्राणों की आहुति देकर धूल चटाई अंग्रेजों को', नरेंद्र वर्मा ने 'जब आरजूएं जल रहीं थीं,तब हमारा कौन था?',  जैसी श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत कीं और डॉ एसके लोहानी ख़ालिस की 'फूँक जाने दो जलाओ नफरत की लंका,हूक उठने दो बजाओ मुहब्बत का डंका' एवं 'कभी ना कहो कि हम ओल्ड हो गए हैं,अनुभव की आंच में तपकर गोल्ड हो गए हैं' जैसी अनमोल गजलों से काव्यसंध्या की श्रेष्ठ गुणवत्ता व सफलता सिद्ध कराई। दिवाकर जावा,गोपाल अजनबी व निशांत सोनी भी सक्रिय रहे। इस काव्यसंध्या में 16 कवि एक-एक कर अपनी रचना टेक्स्ट,वॉयस,ऑडियो,वीडियो संदेश रुप में ऑनलाइन भेजकर सहभागी हुए,संयोजक डॉ एसके लोहानी ख़ालिस और शेष कवि समीक्षा व टिप्पणियाँ करते रहे। अंत में डॉ ख़ालिस ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया।



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