बदहाल व्यवस्था: स्ट्रेचर नहीं मिला तो बच्ची को गोद में उठाकर इधर-उधर दौड़ते रहे परिजन

 

भीलवाड़ा (संपत माली/विजय गढ़वाल)। ऊंची दुकान, फीके पकवान। यह कहावत जिले के सबसे बड़े महात्मा गांधी अस्पताल पर सटीक बैठती है। ऐसा ही एक नजारा मंगलवार को देखने को मिला। भादू गांव का राधेश्याम गाडरी 12 साल की बेटी यशोदा गाडरी को लेकर महात्मा गांधी अस्पताल पहुंचा। यशोदा दो महीने पहले गाय की चपेट में आ गई थी और उसके पैर में फ्रैक्चर हो गया। आज प्लास्टर काटा जाना था। राधेश्याम जब अस्पताल पहुंचा तो उसे स्ट्रेचर नहीं मिला। उसने ढूंढा भी लेकिन स्ट्रेचर कहीं नहीं दिखा। इस पर वह बेटी को गोद में उठाकर तीन नंबर रूम में स्थित आउटडोर में ले गया। वहां यशोदा का प्लास्टर काट दिया गया। इसके बाद चिकित्साकर्मियों ने एक्सरे करवाने उसे 42 नंबर कमरे में भेजा। वहां से उसे सात नंबर में जाने को कहा गया। इस दौरान राधेश्याम बच्ची को गोद में उठाए इधर-उधर दौड़ता रहा। राधेश्याम ने बताया कि वह अपना काम-धंधा छोड़कर बेटी का प्लास्टर करवाने सुबह 8 बजे अस्पताल पहुंच गया था लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह फ्री नहीं हो पाया।
स्ट्रेचर मिल भी जाए तो परिजनों को खुद धकेलना पड़ता है
महात्मा गांधी अस्पताल में वैसे तो स्ट्रेचर मिलता नहीं और मिल भी जाए तो परिजनों को खुद ही उसे धकेलना पड़ता है। मरीज को डॉक्टर के पास ले जाना हो या वार्ड में, यह काम मरीज के अटेंडर्स को ही करना पड़ता है जबकि इस काम के लिए अस्पताल में वार्ड ब्वॉय होते हैं। 

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