रुके - रुके से कदम" लॉक डाउन की ओर बढ़े...... पब्लिक है कि मानती नहीं

 


    -सुशील चौहान-
भीलवाड़ा। पिछले साल लॉक डाउन ओर कर्फ्यू की परेशानियों से "रूबरू" हो चुकी पब्लिक लगता है फ़िर से "संकट" को "पीले चावल" देने को आतुर है। कोरोना एक बार फिर लोगों को अकाल काल का "ग्रास" बनाने की फिराक में  हैं, लेकिन यह बात पब्लिक को या तो समझ नहीं आ रही या अनदेखी कर रही है। अब जो हालात है उससे तय है कि "बुरे दिन" लौट कर आने वाले है। जिसके जिम्मेवार "हम ही हैं" क्योंकि हमारे लिए कोरोना से बचने के उपाय की सरकारी अपील "मजाक" है।हमें न मास्क पहनना हैं, न दूरी बनाए रखनी हैं और सेनेटाइजर को तो भूल ही चुके। ऐसे में कोरोना को हावी होने का मौका मिल रहा है ओर इसमें कोई शक नहीं कि सारे "अवसर" हम ही "उपलब्ध" करवा रहे है। भीलवाड़ा में कोरोना का आंकड़ा दिनों दिन बढ़ रहा है।  देश भर में रॉल मॉडल रहे हमारे भीलवाड़ा में हालात अब काबू से बाहर होते दिख रहे है। कल ही कोरोना पॉज़िटिव का सरकारी आकड़ा "355" तक जा पहुंचा। प्राइवेट के आकड़ों का तो शायद कोई मालिक ही नहीं है। कितनी टेस्ट हो रही कितने पॉजिटिव है । न तो कोई पूछने वाला है न ही बताने वाला। हालात की गंभीरता समझते हुए बाजार बंद करने का समय पांच बजे कर दिया गया है। लेकिन दिन भर कोरोना फैला रहे लोगों को कैसे समझाया जाय कि कोरोना से बचाव के नियमों की धज्जियां तो हम खुद उड़ा रहे है।अरे भाई अभी भी समय मान जाओ वरना देश के हालात ठीक नहीं हैं। आप सब व प्रशासन की काफी मेहनत के बाद कोरोना पर काबू पाया था,लेकिन आप ही सब "करे कराए पर पानी" फेर रहे हो। अब पहले जैसी व्ववस्था होना नामुमकिन तो नहीं हैं, लेकिन दिक्कत तो जरूर आएगी। अब रोल मॉडल भीलवाड़ा में तो उप चुनाव की  चुनौती भी हैं तो धार्मिक आयोजनों की निगरानी की भी। उप चुनाव की बात करें तो वहां तो भाजपा प्रत्याशी रतनलाल जाट भी कोरोना संक्रमित हो गए हैं और उन्हें जयपुर भर्ती कराया गया। अब उनके साथ जो प्रचार कर रहे थे वो "घबरी" खा रहे हैं। वो भी अपनी जांच करवाने के सोच रहे हैं। हालांकि जिला कलक्टर शिव प्रसाद नकाते की टीम में शामिल एडीएम प्रशासन राकेश कुमार, एडीएम सिटी वंदना खोरवाल ओर एसडीएम ओम प्रभा अपने सहयोगियों तहसीलदार लालाराम यादव,जिला रसद अधिकारी सुनील कुमार के साथ लोगों को यह  समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे कि कोरोना से बचाव ही इसका उपचार भी है लेकिन कहते है पब्लिक है सब जानती हैं, पर यहाँ तो मामला उल्टा लग रहा है पब्लिक है कहाँ जानती है कि कोरोना जब आता है तो अपार "दर्द" दे  जाता है।
   

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