सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी: दलित के साथ संगीन अपराध पर SC/ST Act की धाराएं स्वत: नहीं लगाई जाएं
दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी अपराध में, जो दलित वर्ग के सदस्य के खिलाफ किया गया हो, एससी/एसटी कानून की धाराएं स्वचालित रूप से सिर्फ इसलिए नहीं लगाई जा सकतीं कि पीड़ित दलित वर्ग से संबंधित है। एससी/एसटी कानून की धारा 3 (2) (5) तभी लगाई जा सकती है जब यह सामने आया हो कि अपराध उसके दलित होने के कारण किया गया है। धारा 3 (2) (5) कहती है कि गैर अनुसूचित जाति या जनजाति का व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति के खिलाफ ऐसा अपराध करता है जिसमें दस साल या उससे अधिक के कारावास या जुर्माने का प्रावधान है तो, ऐसा व्यक्ति उम्रकैद और जुर्माने का भागी होगा। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता एकमात्र ऐसा आरोपी था जिसने 20 वर्ष की जन्म से अंधी लड़की से 2011 में उसके घर में बलात्कार किया था। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (1) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) एक्ट,1989 की धारा 3 (2) (5) के तहत मुकदमा चला। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सजा की पुष्टि की अभियुक्त संदेह के लाभ का हकदार |
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