निक्रा परियोजनान्तर्गत कृषक जागरूकता कार्यशाला आयोजित


भीलवाड़ा । 

कृषि विज्ञान केन्द्र भीलवाड़ा द्वारा जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार परियोजनान्तर्गत कृषक जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डाॅ. सी. एम. यादव ने फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन, मुर्गीपालन, अजोला, वर्मीकम्पोस्ट एवं वर्षभर हरा चारा हेतु नेपियर घास उत्पादन द्वारा आजीविका बढ़ाने की आवश्यकता प्रतिपादित की साथ ही परियोजना के अन्तर्गत होने वाली अन्य गतिविधियों के बारे में चर्चा की तथा गोदित गाँव ढ़ोलीखेड़ा में स्थापित कस्टम हायरिंग सेन्टर में स्थित उन्नत कृषि यन्त्रों के समुचित उपयोग के साथ जैव विविधता पार्क लगाने का सुझाव दिया। डाॅ. यादव ने बताया कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा विकसित प्रतापधन प्रजाति की मुर्गी एक वर्ष में 160 अण्डे का उत्पादन करती है एवं वयस्क मुर्गे का वजन 2.75 किग्रा तथा वयस्क मुर्गी का वजन 2.25 किग्रा रहता है। इस प्रकार प्रतापधन मुर्गी में स्थानीय मुर्गी की तुलना में चार गुना अण्डा एवं 60 से 70 प्रतिशत शारीरिक वृद्धि अधिक होती है। इसलिए जलवायु अनुकूल परिस्थिति में मुर्गीपालकों की आर्थिक समृद्धि हेतु यह प्रजाति उपयुक्त रहेगी। वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता प्रकाश कुमावत ने किसानों को ग्रीष्मकालीन जुताई एवं रबी फसलों के सुरक्षित भण्ड़ारण की तकनीकी जानकारी दी एवं दुधारू पशुओं को गर्मी से बचाव हेतु सन्तुलित आहार, टीकाकरण, अन्तः एवं बाह्य परजीवी नियन्त्रण और नेपियर घास की तकनीकी को विस्तारपूर्वक समझाया। 
फार्म मैनेजर महेन्द्र सिंह चुण्ड़ावत ने जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार परियोजना के तहत वेस्ट डिकम्पोजर एवं वर्मी कम्पोस्ट लगाने की तकनीकी बताई। कार्यक्रम में वर्षा जल संरक्षण के तहत् खेत का पानी खेत में एवं गाँव का पानी गाँव में के सिद्धान्त को अपनाने पर जोर दिया ताकि वर्षा आधारित कृषि अपनाने में सहायक सिद्ध हो सके। सहायक कृषि अधिकारी नन्द लाल सेन ने बताया कि केन्द्र द्वारा 11 कृषकों को 220 प्रतापधन मुर्गी के चूजे एवं 5 कृषकों को नेपियर घास के प्रदर्शन दिए गए।  


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