जीवन में बड़प्पन रख सबको साथ लेकर चलने की क्षमता वाला ही गुरू- समकितमुनि

 

  भीलवाड़ा, BHN . गुरूवार को वृहस्पति एवं वाचस्पति भी कहते है। वाचस्पति या वाणी का पति या शब्दों का नाथ। वृहस्पति को देवताओं का गुरू भी कहा गया है जो समझाने का कार्य करते है। गुरू का मतलब बड़ा वह होता है जिसमें ज्ञान हो। जो लोग नाक बड़ी रखने के लिए गलत कार्यो का सहारा लेते है समय आने पर लोग उस पर धूल डालते है। घटिया कार्य करने से नाक बड़ी नहीं हो सकती। जन्म पहले लेने से भी कोई बड़ा नहीं हो जाता। बड़ा होने के बाद भी बड़प्पन नहीं आया तो बात नाक बड़ी लेकिन कार्य धूल डालने वाले जैसी है। ये विचार श्रमणसंघीय सलाहकार सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शांतिभवन में गुरूवार को सप्त दिवसीय विशेष प्रवचनमाला ‘‘आपका वार आपसे क्या कहता है’’ के दूसरे दिन गुरूवार को जन्मे व्यक्तियों का उस वार का उनके जीवन में महत्व के बारे में बताते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ज्ञान के साथ विनम्रता आने पर बड़प्पन आता है। ये बड़प्पन उम्र में छोटे में भी हो सकता। उदार सोच नहीं होने पर जन्म से बड़े होने पर भी बड़े नहीं हो सकते। गुरू वह होता जिसके जीवन में बड़प्पन हो एवं सबको साथ लेकर चलने की क्षमता रखता हो। मुनिश्री ने कहा कि आचार्य की आठ संपदा में एक संपदा प्रयोगमति संपदा है यानि अपनी मति का प्रयोग सबको समान रूप से दीक्षित करने में करें। आचार्य संघ में शामिल प्रत्येक श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी की समान रूप से देखभाल व सुरक्षा करेगा। उन्होंने कहा कि वक्त पर हम किसी को वक्त देते है तो वह हमारा स्थाई भक्त होता है लेकिन अधिकतर हम सही समय पर वक्त नहीं दे पाते है। पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि गुरूवार को जन्मे व्यक्ति को णमो आयरियाणमं की साधना करनी चाहिए एवं जहां तक संभव हो पृथ्वीकाय की विराधना से बचना चाहिए। वाणी का संयम रखना चाहिए। तीन के अंक वाला गुरू ग्रह ये तीनों बाते होने पर अपने अनुकूल रहता है। 

धर्मसभा के शुरू में गायनकुशल जयवंतमुनिजी म.सा. ने प्रेरणादायी गीत ‘‘ गुरू है ज्ञान के दाता वहीं नैया तिराते है’’ पेश किया। धर्मसभा में प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया। 

  घर रखना चाहते साफ फिर जुबान क्यों करते गंदी 

 पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि बिना वाणी कोई प्राणी अपने भावों को अभिव्यक्त नहीं कर सकता। विकसित वाणी केवल मनुष्य को मिली है। इंसान की तरह पशु नहीं बोल सकते। जब हम अपना घर साफ रखना चाहते है तो जुबान गंदी क्यो करते है। ऐसा होने पर वृहस्पति अपने से नाराज होना शुरू होता है एवं जीवन में समस्याएं सामने आना शुरू हो जाती है। मुनिश्री ने कहा कि एक श्रावक के मुंह से गाली का उच्चारण शोभा नहीं देता है। मुंह के बोल अनमोल होने से वाणी कभी अपनी गंदी नहीं करनी चाहिए। हमे गंदा पानी नहीं चलता लेकिन वाणी गंदी चलती है।  वाणी ही होती है जो मित्र को शत्रु और शत्रु को मित्र बना सकती है। वाणी का संयम रखना आ गया तो बहुत सारी परेशानियों से खुद को एवं परिवार को बचा सकते है। 

  बोलने की जरूरत होने पर खामोशी की चादर नहीं ओढ़े 

 पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि वाणी का उपयोग संयमति करना चाहिए लेकिन जहां जरूरत हो वहां खामोशी की चादर भी नहीं ओढ़नी चाहिए अन्यथा महाभारत होती है। भीष्म को गलत बातों का प्रतिकार करना चाहिए था लेकिन उस समय खामोशी की चादर ओढ़ लेने का परिणाम महाभारत हुआ। उन्होंने कहा कि विवेक होना आवश्यक है। बोलना जरूरी होने पर चुप रहना अपराध है ओर जहां चुप रहना वहा बोलना अपराध है। 

  पूज्य मदनमुनिजी एवं हस्तीमलजी म.सा. का किया स्मरण 

 प्रवचन के दौरान पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने पूज्य मेवाड़ प्रवर्तक मदनमुनिजी पथिक म.सा. एवं पूज्य हस्तीमलजी मेवाड़ी म.सा. का भी स्मरण करते उनके गुणों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भोले बाबा के रूप में मशहूर पूज्य मदनमुनिजी म.सा. ने अपनी सरलता एवं सादगी से मेवाड़ के हर दिल में स्थान बनाया। आज भी उनका नाम जुबान पर आते ही भक्तों की आंखों में आंसू आ जाते है। उन्होंने पूज्य हस्तीमलजी मेवाड़ी म.सा. को मेवाड़ का अनमोल रत्न बताते हुए कहा कि उन्होंने अपना अंतिम समय रायपुर में व्यतीत किया। उनके पुण्य स्मरण दिवस पर गुणानुवाद किया।  

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