अपने भीतर की बुराईयों का त्याग ही उत्तम त्याग धर्म - मुनि शुभम सागर
भीलवाड़ा । सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हाऊसिंग बोर्ड शास्त्रीनगर में पर्यूषण के आठवां दिन उत्तम त्याग धर्म पर बताते हुए मुनि शुभम सागर ने बताया कि निज शुद्धात्मा के ग्रहणपूर्वक परद्रव्यों में ममत्व, एकत्व रूप, मोह, राग, द्वेष रूप विकारी भावांे का छोड़ना ही वास्तविक उत्तम त्याग धर्म है। निश्चय और व्यवहार मोह-राग-द्वेष को निश्चय त्याग व औषधि, शास्त्र, अभय और आहार आदि सुपात्रों को देना वह व्यवहार त्याग या दान है। त्याग का अर्थ है छोड़ना। परिग्रह का त्याग करना त्याग है, बाहरी परिग्रह को छोड़ देना बहिरंग त्याग है तथा अतरंग परिग्रह (विकार, बुराईयाँ आदि) छोड़ देना आंतरिक त्याग है। ग्रहण करते समय भी छोड़ने का भाव रहना उत्तम त्याग धर्म है। सभी को कुछ न कुछ त्याग करना चाहिये। जबक मनुष्य पर द्रव्यांे के प्रति होने वाले मोह, राग, द्वेष को छोड़ देता है। सांसारिक सुख एवं भौतिक सुविधाओं को भोगने की इच्छा न करना ही त्याग धर्म है। सभी को अपने सामर्थ्य अनुसार दान के भावांे में प्रवृति करते हुये उत्तम त्याग धर्म को ग्रहण करें और मोक्ष मार्ग पर अग्रेषित हो। |
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