अपने भीतर की बुराईयों का त्याग ही उत्तम त्याग धर्म - मुनि शुभम सागर

 

भीलवाड़ा । सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हाऊसिंग बोर्ड शास्त्रीनगर में पर्यूषण के आठवां दिन उत्तम त्याग धर्म पर बताते हुए मुनि शुभम सागर ने बताया कि निज शुद्धात्मा के ग्रहणपूर्वक परद्रव्यों में ममत्व, एकत्व रूप, मोह, राग, द्वेष रूप विकारी भावांे का छोड़ना ही वास्तविक उत्तम त्याग धर्म है। निश्चय और व्यवहार मोह-राग-द्वेष को निश्चय त्याग व औषधि, शास्त्र, अभय और आहार आदि सुपात्रों को देना वह व्यवहार त्याग या दान है। त्याग का अर्थ है छोड़ना। परिग्रह का त्याग करना त्याग है, बाहरी परिग्रह को छोड़ देना बहिरंग त्याग है तथा अतरंग परिग्रह (विकार, बुराईयाँ आदि) छोड़ देना आंतरिक त्याग है। ग्रहण करते समय भी छोड़ने का भाव रहना उत्तम त्याग धर्म है। सभी को कुछ न कुछ त्याग करना चाहिये। जबक मनुष्य पर द्रव्यांे के प्रति होने वाले मोह, राग, द्वेष को छोड़ देता है। सांसारिक सुख एवं भौतिक सुविधाओं को भोगने की इच्छा न करना ही त्याग धर्म है। सभी को अपने सामर्थ्य अनुसार दान के भावांे में प्रवृति करते हुये उत्तम त्याग धर्म को ग्रहण करें और मोक्ष मार्ग पर अग्रेषित हो।
       मीडिया प्रभारी भागचन्द पाटनी ने बताया कि शांतिधारा एवं आरती का टीकमचन्द, शकुन्तला देवी, धर्मचन्द, कमलेश, प्रियंका, सहर्ष छाबड़ा परिवार एवं गुलाबचन्द, मनीष, नीरज, प्रियांश, आर्स शाह परिवार को मिला। आज प्रातः दशलक्षण मंडल विधान के अन्तर्गत उत्तम त्याग धर्म के अर्घ महापात्रांे द्वारा मण्डल विधान पर अर्पित गये। पूजा का संचालन पं. पदमचन्द काला ने किया।
       सचिव राजकुमार बड़जात्या मध्यान्ह में मुनि शुभम सागर के सानिध्य में तत्वार्थ सूत्र का वाचन, सामायिक, प्रतिक्रमण शास्त्र स्वाध्याय किया गया। सांयकाल की जिनेन्द्र-भगवान मंगल आरती मंगल दीपों के साथ महाआराधना की गयी। रात्रि मंे पाठशाला के बच्चों द्वारा जमीकंद के त्याग के बारे में नाटिका की प्रस्तुति दी गई।
       पर्यूषण के नियमित कार्यक्रम: प्रातः 5 बजे साधना एवं ध्यान शिविर, प्रातः 6.15 बजे अभिषेक एवं शांतिधारा, प्रातः 7.15 बजे दशलक्षण विधान पूजा, प्रातः 09.15 बजे मुनिसंघ के प्रवचन, दोपहर 2.30 बजे स्वाध्याय एवं तत्वचर्या, सांय 5 बजे सामुहिक प्रतिक्रमण, सांय 7.15 बजे जिनेन्द्र भगवान की आरती, सांय 7.30 बजे शास्त्र सभा होगी।

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