प्रधानमंत्री की अपील नहीं मान रहे उद्योगपति, श्रमिक पलायन के लिए मजबूर
भीलवाड़ा हलचल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर फैक्ट्री और अन्य उद्योगों के मालिकों के ध्यान नहीं देने का ही परिणाम है कि आज बाहरी मजदूरों को शहर छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ रहा है और जो यहां रह रहे हैं उनमें से कई लोगों के सामने भूखमरी की स्थिति पैदा होती जा रही है।
कोरोना वायरस से एक-एक जिंदगी बचाने के लिए प्रधानमंत्री ने देशभर में लॉक डाउन की घोषणा की। इसी के साथ उन्होंने श्रमिकों को पूरा वेतन देने का आह्वान सभी नियोजकों से किया, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। अधिकांश फैक्ट्री मालिकों ने श्रमिकों को घर जाने को कह दिया है। ऐसी स्थिति में उनके पास माह के अंत में न तो पैसे है और न ही घर जाने के लिए साधन। कई लोग तो फटेहाल स्थिति में ही पैदल ही घरों के लिए सड़क और रेलवे ट्रैक पर चल रहे हैं।
भीलवाड़ा में 380 से ज्यादा कपड़ा फैक्ट्रियां और इनसे जुड़े कामों में हजारों श्रमिक लगे हैं। वहीं सड़क, भवन, ईंट उद्योग, केबल बिछाने, सिवरेज कार्य सहित अन्य कामों में मध्यप्रदेश , पश्चिमबंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश और आसाम तक के लोग यहां मजदूरी कर रहे हैं। इन श्रमिकों के सामने रहने, खाने का संकट खड़ा हो गया। लोक डाउन के चलते कई श्रमिक तो ऐसे हैं, जिन्हें काम पर लाने वाले ठेकेदार उनके हाल जानने तक नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में यह श्रमिक बस और रेल बंद होने के बाद अब पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं। ये ही स्थिति भीलवाड़ा से बाहर आइस्क्रीम, बोरिंग और ड्रिलिंग कार्य में लगे हजारों श्रमिकों की है। वे भी भीलवाड़ा आने को बेताब है। तमिलनाडू हो या उत्तराखंड, वहां उलझ कर रह गये हैं।
प्रशासन ने वैसे तो ऐसे लोगों के लिए पुख्ता प्रबंध किये हैं, लेकिन वे श्रमिक ज्यादा परेशान है जो बाहर से आकर यहां अस्थायी कामों में लगे हैं। ठेकेदारों के माध्यम से चल रहे काम पर लगे इन श्रमिकों के कहीं भी नाम प्रशासन के पास नहीं है। वहीं कई फैक्ट्रियों में घुमटियां बनाकर रह रहे श्रमिकों के सामने भी खाने पीने की स्थिति गड़बड़ा गई है। क्षेत्र के सरपंच हो या वार्ड पार्षद वे भी अब तक ऐसे सभी लोगों तक नहीं पहुंच पाये हैं। इससे वे फैक्ट्रियों में ही कैद है। फैक्ट्री प्रबंधकों ने उन्हें घर जाने को कह दिया है।
दूसरी और दिहाड़ी मजदूरी करने वाले श्रमिकों के सामने भी हालात विकट है। होली के बाद गांव से लौटे इन श्रमिकों की स्थिति विचित्र हो गई है। अभी तक इन्हें पहला वेतन भी नहीं मिल पाया है। अब वे ना तो गांव लौट सकते हैं और न यहां इनके कोई मददगार हैं। ऐसे में कई लोग तो अपने सैकड़ों मिल दूर घरों की ओर कूच करने के लिए निकल चुके हैं।
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