अकाली दल, शिवसेना जैसे सहयोगियों के जाने के बाद भी टेंशन में नहीं बीजेपी

बीजेपी ने बीते कुछ वक्त में एनडीए में अपने कई सहयोगियों को खोया है। 2019 के अपने लोकसभा चुनाव में बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आई पार्टी को अपने सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल को हाल ही में खोना पड़ा है। इसके अलावा बिहार चुनाव को लेकर लोकजनशक्ति पार्टी से भी मतभेद की स्थिति है। रामविलास पासवान के जाने के बाद फिलहाल पार्टी अकेले दम पर चुनावी समर में है। हालांकि इस स्थिति के बाद भी बीजेपी की लीडरशिप बहुत ज्यादा चिंतित नहीं दिखती है। बीजेपी के इस कॉन्फिडेंस को लेकर राजनीतिक विश्लेषक भी हैरान हैं, लेकिन पार्टी के आत्मविश्वास की दो अहम वजहें हैं।पहली बात यह है कि चुनावी समीकरणों के मामले में फिलहाल पार्टी खासी मजबूत है। 2014 से 2019 के दौरान एनडीए से 15 पार्टियों ने किनारा किया था, लेकिन इसके बाद भी 2019 की जीत बीजेपी के लिए पहले के मुकाबले बड़ी ही रही। आंकड़ों की नजर से देखें तो 2014 में एनडीए को 336 सीटें मिली थीं और अगले 5 सालों में 22 सीटों वाले साथियों ने उसे छोड़ दिया था। इसके बाद 2019 के चुनाव में एनडीए पहले के मुकाबले और बढ़त हासिल करते हुए 352 सीटें जीतकर वापस आया। अब 2019 के बाद की बात करें तो एनडीए के खाते से 21 लोकसभा सीटें कम हो गई हैं। 18 सीटें जीतने वाली पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने पाला बदल लिया है।


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