विश्व जनमानस महावीर के उपदेशों को अपनाए तो कोरोना वाइरस, ग्लोबल वार्मिंग, अहिंसा व आतंकवाद जैसी समस्याओं से जूझना ही न पड़े

 

भीलवाडा (हलचल)। दिगम्बर जैन समाज रविवार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को  महावीर भगवान को 2547वां निर्वाण महोत्सव मनायेगा। इस अवसर पर शहर के विभिन्न जैन मंदिरों में निर्वाण लड्डु चढाये जायेगे।
आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश गोधा ने बताया कि रविवार प्रातः 6.30 बजे से अभिषेक, महावीर भगवान का महामस्ताकाभिषेक, 108 रिद्धी मंत्र अभिषेक के बाद निर्वाण काण्ड पाठ के साथ निर्वाण लड्डु चढाया जायेगा। इस अवसर पर मंदिर  पर आकर्षक विद्युुत सज्‍‍‍‍जा की गई है।  
सचिव अजय बाकलीवाल ने बताया कि शनिवार धनतेरस पर मंदिर के दक्षिण भाग में निर्माण किये गये फिजियोथिरेपी सेन्टर, प्रवचन हॉल, स्वाध्याय भवन एवं ध्यान केन्द्र का शुभारम्भ मंत्र जाप एवं मण्डल विधान पूजन के साथ किया जाएगा।
ट्रस्ट के उपाध्यक्ष महेन्द्र सेठी ने कहाकि भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के निर्वाण के 272 वर्ष बाद और ईस्वी सन से 609 वर्ष पूर्व भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ। उस काल में धार्मिक रीति - रिवाज अपने पाखंडमयी क्रियाकांडों के कारण बेहद बिगड़ चुके थे। धर्म के नाम पर हिंसा होती थी। अत्याचार-असत्य-स्वार्थ-अधर्माचार आदि के कारण नैतिक गुणों पर पाला पड़ा था। ऐसे समय में अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने संसार को सच्चे धर्म का उपदेश दिया। उनकी उपदेश सभा समवशरण के द्वार विश्व के प्राणिमात्र के लिए खुले थे। महावीर ने अपने उपदेश उस समय की राष्ट्रभाषा अर्द्धमागधी में दिया।
संसार के इतिहास में पहिले-पहल पूंजीवाद की खिलाफत महावीर स्वामी के निरूसंगवाद में मिलती है। आर्थिक विषमता को मिटाने के लिए उन्होंने अपरिग्रहवाद का धर्म में समावेश किया। निरूसंगवाद का अर्थ-जरूरत से अधिक नहीं जोड़ना।
भगवान महावीर की विराट धर्म-सभा में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को उच्च स्थान प्राप्त था। भगवान महावीर स्त्रियों का बहुत आदर करते थे। उनकी उपदेश सभा में अधिक संख्या में स्त्रियां पहुंचकर दिव्योपदेश सुनती थी और आत्म कल्याण में विरत हो जाती थी
महावीर ने कहाकि दया मानव-धर्म का मूल मंत्र है; दया शून्य धर्म हो ही नहीं सकता, दूसरों की भलाई में अपनी भलाई निहित है। खुद जियो और दूसरों को भी जीने दो। विरोधी की सत्यनिष्ठा को भली भांति समझलेने में ही तुम्हारी सत्य निष्ठा है, प्रत्येक वस्तु को ठीक-ठीक समझने के लिये उसे विभिन्न दृष्टियों से देखो, उसके अलग-अलग पहलुओं से विचार करो।
महावीर के अनुसार मानव जाति एक ही है। उसको कई भागों में बाँटना निरी मूर्खता है। गुणों की पूजा करो, शरीर की नहीं। सब मनुष्यों को अपना भाई समझो और अनुचित भेद भावों को भूल जाओ। कर्मवाद- जो जैसा करता है वही उसे भोगता है। जैसी करनी वैसी भरनी। परम पिता परमात्मा कोई किसी को सुख दुःख नहीं देता किंतु पूर्वबध्द कर्मों का प्रतिफल समय आने पर व्यक्ति को अपने आप मिलता है।
महावीर स्वामी ने अपने सदुपयोगी संदेशों द्वारा संसार को सुखी शांत और पवित्र बनाया। लगातार 30 वर्षों तक दिव्योपदेश देने बाद 72 वर्ष की आयु के अंत समय कार्तिक कृष्ण अमावस्या की पहली रात्रि को स्वाति नक्षत्र में बिहार प्रान्त के पावापुर से अवशिष्ट 4 घातिया कर्मों का नाश कर भगवान महावीर स्वामी ने मोक्ष-लक्ष्मी को वरण किया।



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