कोरोना को हल्के में नहीं लें: रिकवर होने के बाद 30 प्रतिशत लोगों के फेफड़े कमजोर हो गए, श्वास नली में भी दिक्कत

 

भीलवाड़ा (हलचल)। कोरोनाकाल का एक साल पूरा हो चुका है। दिसंबर में कोरोना के केस कम होने के बाद लोगों ने लापरवाही बरतनी शुरू कर दी। इससे दम तोड़ते कोरोना को फिर से नया जीवन मिल गया है और वह अब दुगुनी से भी तेज रफ्तार से बढऩे लगा है। डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि अभी कोरोना की दूसरी लहर चल रही है और यह पहली लहर से कई गुना खतरनाक बताई जा रही है।
कुछ लोगों का यह भी सोचना है कि हमारी इम्युनिटी पावर मजबूत है तो इस बार लोगों को ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है क्योंकि दूसरी लहर वाला कोरोना इम्युनिटी पावर से प्रभावित नहीं होता है। खतरा इसलिए भी ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि मौसम परिवर्तन के इस दौर में सीजनल बीमारियों के रोगी भी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। ऐसे में सीजनल बीमारियों व कोरोना के लक्षण काफी मिलते-जुलते होने से लोगों को एक ही इलाज देना पड़ रहा है। अधिकतर लोगों की कोरोना जांच करवाई जा रही है।
दिन ब दिन नए कोरोना संक्रमित मिलने से इनका आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। चिकित्सा विभाग खुद मान रहा है कि इसी तरह से बढ़ता रहा तो स्थिति पिछले साल से भी भयावह हो सकती है। इसके विपरीत लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की पालना बहुत कम कर रहे हैं। होली पर लोगों ने भले ही रंग और पानी से होली नहीं खेली, लेकिन गुलाल का टीका लगाने के बहाने एक-दूसरे के संपर्क में आए। कोरोना संक्रमण तो इससे भी हो सकता है।
रिकवर हुए 23 प्रतिशत मरीजों के फेफड़ों में फाइब्रोसिस की शिकायत, 7 फीसदी की श्वास नली में समस्या
कोटा में मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के डॉक्टरों ने कोरोना से रिकवर हुए मरीजों पर रिसर्च की है, जिसमें सामने आया कि रिकवर हो चुके 30 फीसदी मरीजों के फेफड़े कमजोर हो गए हैं और श्वास नली में अवरोध पैदा हो गए हैं। अब इन मरीजों को दूसरी बीमारियों का खतरा आम लोगों से ज्यादा है। ये वे मरीज हैं, जिन्हें रिकवर हुए 4 से 5 माह हो चुके हैं। कोविड के साइड इफेक्ट लंबे समय तक रह सकते हैं और कई मरीजों में तो जिंदगीभर इस बीमारी के कॉम्पलिकेशन हो सकते हैं। रिसर्च में 23 प्रतिशत मरीजों में लंग्स के एल्व्यूलाई में सिकुडऩ का पता चला है। यह वह जगह है, जो लंग्स में एयर स्पेस होती है। इस जगह पर फाइब्रोसिस बन गए, जिससे इनकी ऑक्सीजन भरने की क्षमता कम हो गई है। दूसरी तरफ  7 प्रतिशत मरीजों की श्वास नली में अवरोध पैदा हो गए हैं, जिससे मरीजों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस को बाहर निकालने में समस्या आ रही है। ये मरीज ज्यादा चलने-फिरने पर हांफने लगते हैं, इनकी कार्यक्षमता पर इसका बुरा असर पड़ा। रिसर्च में शामिल 166 मरीजों में 109 पुरुष और 57 महिलाएं थीं और इनकी उम्र 20 से 80 साल थी।

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