अंतध्र्यान को छोड़ धर्मध्यान में रमण करो: शांति मुनि

 

चित्तौडग़ढ़ (हलचल)। शांत क्रांति संघ के श्रमण श्रेष्ठ शांति मुनि ने मंगलवार को शांतिभवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी ध्यान साधक हैं और हमारी ध्यान साधना अनवरत चलती रहती है। अनन्त काल से चल रही है। ध्यान हम करते हैं अथवा होता है। प्रतिपल ध्यान होता है। संसार के सभी प्राणी ध्यान करते हैं। वैसे कुछ लोग मानते हैं कि ऐकेन्द्रीय जीवों में ध्यान नहीं होता है। किन्तु भगवान महावीर कहते हैं कि अठे लोए अर्थात यह लोक आत्र्तरूप है। आत्र्त का मतलब पीडि़त, दु:खित है। यानि आत्र्तध्यानी है। अंतध्र्यान के वैसे चार प्रकार हैं अंतध्र्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान व शुक्ल ध्यान। हमारा ध्यान कौनसा है यह चिंतन का विषय है। संसार की अधिकांश आत्माएं अंतध्र्यान में ही रहती है क्योंकि पीडि़त एवं दु:खी रहते हैं। हमारे जीवन में कौनसा ध्यान प्रवाहित होता है कौनसे भावों में हम रमण करते हैं। कैसे विचार तरंगे उठती है। यह सब सोचने का विषय है। हमें धर्मध्यान में समय लगाना चाहिये। धर्मस्थानक में आकर हम धर्मध्यान के उपर चिन्तन नहीं कर पायें तो हमारी साधना निष्फल हो जाएगी।
इससे पूर्व आचार्य विजयराज ने कहा कि सत्य ही भगवान है। जो जीवन को उन्नत बनाते हैं वे सभी भाव शुभ होते हैं। शुभ भावों को चार भागों में पिरोया जा सकता है। यह चार भाव जीवन को उन्नत बनाने वाले होते हैं।

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