प्रकृति के सच्चे चितेरे कवि हैं -राठौड़

 

 राजसमन्द ( राव दिलीप सिंह) प्रकृति के  सच्चे चितेरे एवं सरंक्षक कवि साहित्यकार होते हैं। अपनी कलम के माध्यम से आम वर्ग को पर्यावरण के प्रति सचेष्ट करते आये हैं, सिर साठे रूंख राखणो जैसी पंक्तियों से हमने प्रकति को सरंक्षित किया हैं। 

उप वन सरंक्षक फतेह सिंह राठोड़ ने उक्त विचार पर्यावरण चेतना केन्द्र रूठी रानी महल परीसर राजसमन्द में आयोजित साकेत साहित्य संस्थान द्वारा लिखित पुस्तक "कलरव " के विमोचन कार्यक्रम में व्यक्त किए।

      सहायक वन सरंक्षक विनोद कुमार राय ने अपने उदबोधन में  कहा कि गीत गजल काव्य स्लोगन एवं नारों से वनों की उपादेयता को सरस सरल तरीके से प्रस्तुत किया हैं। वन है तो तन है तन है सबकुछ हैं।

      पुस्तक के  संपादक नारायणसिंह राव ने बताया कि साकेत साहित्य संस्थान के सामाजिक सरोकार के प्रकाशन के तहत पेड़ पक्षी पानी प्रकृति एवं पर्यावरण को समर्पित यह ई बुक हैं। साहित्यकार का साहित्यिक कर्तव्य होता हैं कि वह समुदाय के लिए कुछ करें उसी का यह अनुभाग हैं।

     इस अवसर पर श्रीमती कुसुम अग्रवाल वीणा वैष्णव ज्योत्स्ना पोखरना दीपिका मूंदड़ा गोविंद औदीच्य नारायणसिंह राव कमलेश जोशी पुरण शर्मा यशवंत शर्मा बख्तावरसिंह चुंडावत रामगोपाल आचार्य दर्शन पालीवाल राधेश्याम राणा कमल अग्रवाल ने प्रकृति को समर्पित  अपनी कविताओं से समां बांध दिया।

उपस्थित वन विभाग के कार्मिक एवं अधिकारीगण ने अपनी सहभागिता दर्ज करवाकर कविगण का उत्साहवृद्धन किया।

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