मोहनीय कर्म आत्मकल्याण में सबसे ज्यादा बाधक - महासती विमलाकंवर


चित्तौड़गढ़।  साधुमार्गी संघ की महासती शासनदीपिका  विमला कॅवरजी म.सा. ने  शुक्रवार को अरिहन्तभवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मोहनीय कर्म आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु है। यह मोहनीय कर्म सब कर्मो से ज्यादा प्रभावशील है और आत्मकल्याण में बाधक है। आप व्यापार करते है तो व्यापारिक जानकारी पूरी रखते है। किसका लेना देना कैसा है। किसके साथ केसा व्यापारिक संबंध रखना, आप सजग रहते है। जिसको यह जानकारी नही है, वह सफल व्यापारी नही है। उसी प्रकार हमें भी कर्मो की पूरी जानकारी होनी चाहिये कि कौनसा कर्म कैसे बन्धता है।  पुराने जमाने में साधक सभी क्रियाऐं विधिपूर्वक किया करते थे। विधिपूर्वक की गई धर्म क्रिया ही आत्मकल्याण में सहायक होती है।
    आपने कहाकि पुराने जमाने में राजा धर्मभीरू हुआ करते थे। राजनीति में धर्मनीति का समावेश होता था जिससे राजनीति पवित्र रहती थी और राजा प्रजा के हितकारी होते थे किन्तु आज वैसा नहीं है। आपने आलस्य एवं प्रमाद को तजकर जिनवाणी सुनने का आव्हान करते हुए कहाकि तप-त्याग-प्रत्याख्यान के द्वारा ही कर्मो की निर्झरा संभव है।
    इससे पूर्व महासती सुमित्राश्रीजी म.सा. ने अपने उद्बोधन में प्रमाद के पांच कारणों में दूसरा  कारण विषय बताया। अर्थात जो व्यक्ति इन्द्रियों के विषय में आशक्त हो जाता है तो प्रमादी बन जाता है। हर इन्द्रिय का अपना विषय है, जैसे कान का विषय सुनना है। पर हम अच्छा सुने, बुरा सुनने की  प्रवृत्ति को तजे। जब व्यक्ति इन्द्रिय का आशक्ति बन जाता है तो उसे बुरा सुनने में रस आता है और यही इन्द्रिय के विषयों की आशक्ति प्रमाद का कारण है।
    आपने कहाकि गोत्तम स्वामी चार ज्ञान व चवदा पूर्व के ज्ञाना होते हुए भी अपने आपको पूर्ण ज्ञानी नही मानते थे पर आजकल थोड़ा सा ज्ञानार्जन करने वाले भी अपने आपको बड़ा ज्ञानी मान लेते है। यही ज्ञान का अहंकार उनकी उन्नति में बाधक बन जाता है। जीवन में यदि अज्ञान है तो प्रमाद से छुटकारा नहीं मिल पायेगा। सर्वप्रथम ज्ञान आवश्यक है। सम्यक ज्ञान के बाद ही सम्यक दर्शन आयेगा और सम्यक दर्शन के बाद ही सम्यक चारित्र संभव है। ज्ञान के बिना अज्ञान दूर नहीं होगा और जब तक अज्ञान है, दुःख दूर नही होगें। इसलिए शास्वत सुख चाहते हो तो अज्ञान को तजों सम्यकज्ञान प्राप्त करों।
    आपने कहाकि आज हम मकान बनाते है तो उसमें गैरिज की व्यवस्था जरूर रखते है, पर धर्मसाधना के लिये  पौषधशाला की व्यवस्था नहीं रखते। शुद्ध धर्मसाधना के लिये घर में पृथक पोषधशाला होना जरूरी है। जैसे धर्मस्थान में भी यदि सावद्य क्रियाऐं होती है तो वह धर्मस्थान धर्मसाधना के अनुकूल नही है। जैसे अरिहन्तभवन में जहां धर्मसाधना होती है, वहां सावद्य क्रियाऐं अर्थात विवाह समारोह  आदि के लिये उपयोग में नहीं लिया जाता।  कार्यक्रम का संचालन मंत्री विमलकुमार कोठारी ने  किया।

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