चलो चले उस बस्ती में जहाँ इंसान बसते हो...

 



शाहपुरा- मूलचन्द पेसवानी. अणुव्रत समिति शाहपुरा के तत्वावधान में आयोजित अणुव्रत सप्ताह के अर्न्तगत माताश्रय भवन में साम्प्रद्रायिक सौहार्द विषय पर काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। 
अणुव्रत समिति के सचिव गोपाल पंचोली ने  ‘जहां धर्म की रोशनी नहीं वहां अधर्म का धुआं पसर जाता है इस धुंए में गिरे आदमी को कुछ भी स्पष्ट दिखता नहीं देता, सुनाई जिसे भरपूर दाद मिली। 
गोष्ठी का संचालन कर रहे कवि दिनेश बंटी ने जब आरती और अजान ‘‘अ’’ से बनते है, जब मंदिर और मस्जिद ‘‘म’’ से बनते हैं, जब ईश्वर और इलाही दोनों एक ही है मेरे भाई तो किस बात का फसाद, किस बात की लड़ाई तथा गली-गली गद्धार मिलेंगे, ढूंढों एक हजार मिलेंगे, कुछ सरहद के अंदर है तो कुछ सरहद के पार मिलेंगे सुनाकर जिसे खूब सराहा गया। गोष्ठी के समापन पर कवि डॉ0 कैलाश मण्डेला ने - ये तुम्हारा वतन, वो तुम्हारा वतन, कौनसा फिर कहो, है हमारा वतन सुनाकर कार्यक्रम को उंचाईयां प्रदान की।
गीतकार सत्येन्द्र मण्डेला ने भारत माता कुणनै कहवे बेटो आपणों, देख रही है धर्म की लकड़ियां सूं लोगां को तापणों। देश हितां री जल री होळी हाथ सभी के सोठी है, कुछ लम्बी डाड्यां है तो कुछ क लम्बी चोटी है। अणुव्रत समिति के अध्यक्ष तेजपाल उपाध्याय ने कोमी एकता पर सार्थक रचना प्रस्तुत की। 
कवि वेदप्रकाश सुथार ने शाहपुरा के इतिहास पर एवं शहर के साम्प्रदायिक सौहार्द पर बेबाक रचना प्रस्तुत की। रंगकर्मी रामप्रसाद पारीक ने सिर्फ एक हादसे से मेरी बस्ती बदनाम हो गई, पहले आबाद थी अब गुमनाम हो गई तथा चलो चले उस बस्ती में जहाँ इंसान बसते हो, मजहब की दीवारे ना हो सुनाकर गोष्ठी को ऊंचाईयां प्रदान की। 
साहित्य सृजन कलां संगम संस्थान के अध्यक्ष जयदेव जोशी ने गोलियां से घात छलनी यूं न कर, प्यार के जजबात छलनी यूं न कर, इस तरह तू दुष्ट मत चाकू चला, धर्म का मतलब नहीं काटो गला बो सके तो प्यार के कुछ बीज बोज धर्म की चादर के खूनी दाग धो। 
सर्वप्रथम कवि डॉ0 कैलाश मण्डेला द्वारा माँ शारदे की वंदना -शारदे वर दे, मधुरमय हम करें माँ वंदना प्रस्तुत की। प्रथम कवि के रूप में नवोदित कलमकार सुनील भट्ट ने ऊंच नीच और जाति धर्म का भेद भव मिट जाएगा, फिर से अपना देष भारत विश्व गुरू कहलायेगा। गीतकार त्रिपुर्रारी चक्रवृति ने श्रृंगार रस के दो बेहतरीन गीत पढ़े।

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