| भीलवाड़ा बीएचएन। दीपावली के बाद अब चार दिनों तक चलने वाली प्रकृति पूजा छठ महापर्व की तैयारियां शुरू हो चुकी है। जिले के लगभग सभी तालाब, कुंड, सरोवर में पूजा के आयोजन की तैयारी के लिए साफ सफाई और अन्य कार्य प्रारंभ हो चुका है! भीलवाड़ा जिले में निवासरत बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड व आसपास के राज्यों के हजारों लोग दीपावली के दूसरे दिन से इस महापर्व की तैयारी में लग गए हैं! हिंदू पंचांग के अनुसार दिवाली के बाद छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली पर जहां मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है वहीं छठ पर्व सूर्यदेव और षष्ठी मैया को समर्पित होता है। चार दिनों तक चलने वाली यह महापर्व पूर्ण श्रद्धा व पूरे विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। सूर्य उपासना का सबसे बड़ा और पवित्र त्योहार छठ पूजा माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से शुरू हो जाता है छठ पूजा चार दिवसीय पर्व और उत्सव है। छठ पर्व के चार दिनों के दौरान भगवान सूर्य और उनकी बहन मां उषा की पूजा-अर्चना,अघ्र्य और मनोकामनाएं मांगी जाती हैं। छठ पर्व पर भगवान सूर्य के साथ षष्ठी मैया की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को दोनों का आशीर्वाद मिलता है। इन चार दिनों तक चलने वाले महापर्व पर व्रत, धार्मिक अनुष्ठान और मांगलिक कार्य किए जाते हैं। छठ पूजा के दिन सूर्यदेव को अघ्र्य देने की विशेष परंपरा निभाई जाती है। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जहां पर सूर्य देव की आराधना डूबते हुए सूर्य को समर्पित करते हुए की जाती है। पूर्वांचल के लोगों के लिए यह त्योहार बहुत ही खास होता है। हिंदू धर्म में सूर्यदेव की उपासना, साधना, अघ्र्य का ज्योतिषीय महत्व होता है। सभी देवी-देवताओं में सूर्य देव ऐसे भगवान हैं जो प्रत्यक्ष रूप से मौजूद हैं। शास्त्रों में सूर्यदेव को इस समूचे जगत की आत्म माना गया है। सूर्य के प्रकाश से अंधकार दूर होता है और इनकी किरणों से सभी जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और मनुष्यों को जीवन मिलता है। सूर्य की किरणों में कई तरह की बिमारियों को खत्म करने के गुण मौजूद होते हैं। ज्योतिष में सू्र्यदेव का विशेष महत्व होता है। जिन जातकों की कुंडली में सूर्यदेव उच्च के होते हैं ऐसे जातक तेजवान, गुणवान, आत्मविश्वास से भरे हुए, मान-सम्मान प्राप्त करने वाले और सेहतमंद होते हैं। वहीं अगर सूर्य देव की बहन छठ मैया की आराधना का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार छठी मैया भगवान ब्रह्राा की मानस पुत्री और देवी कात्यायनी का स्वरूप है। छठ पूजा पर महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि के लिए कई घंटों का कठोर निर्जला व्रत रखती हैं। छठ पूजा और धार्मिक अनुष्ठान सूर्य उपासना का सबसे बड़ा पर्व छठ पर्व लगातार चार दिनों तक चलता है। जिसमें हर एक दिन का विशेष महत्व होता है। छठ पर्व महिलाओं के द्वारा किया जाने वाला यह सबसे कठिन व्रत में से एक होता है। इन चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व पर कई तरह धार्मिक अनुष्ठान चलते हैं। पहला दिन- नहाय खाए, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। नहाय खाय पर सभी व्रत रखने वाले भक्त सुबह जल्दी स्नान करके नए कपड़े पहनते हैं और सात्विक व शाकाहारी भोजन करते हैं। इस दिन शाम के समय जब व्रती भोजन ग्रहण कर लेता है उसके बाद ही घर के अन्य सदस्य भोजन करते हैं। दूसरा दिन- खरना छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह दिन कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि होती है। खरना का दिन कठोर व्रत का दिन होता है। खरना के दिन व्रती पूरे दिन अन्न और जल का सेवन नहीं करते हैं। शाम को मिट्टी के चूल्हे पर चावल और गुड़ से खीर बनाई जाती है। विभिन्न प्रकार के फलों के अलावा इस दिन घी लगी रोटी को प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है। तीसरा दिन- संध्या अघ्र्य छठ महापर्व का तीसरा दिन संध्या अघ्र्य का होता है। यहा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है। यही छठ पूजा का सबसे प्रमुख दिन होता है। इस दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। सूर्य को अघ्र्य देने हेतु पूजन सामग्री के साथ बांस की टोकरी में फल, फूल, ठेकुआ,चावल क लड्डू, गन्ना, मूली, कंदमूल और सूप रखा जाता जाता है। इस दिन जैसै ही सूर्यास्त होता है परिवार के सभी लोग किसी पवित्र नदी, तालाब या घाट पर एकत्रित होकर एक साथ सूर्यदेव को अघ्र्य देते हैं। छठ महापर्व के दिन डूबते सूर्य को अध्र्य देने और आराधना का विशेष महत्व होता है। चौथा दिन- ऊषा अघ्र्य यह छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है और इसी के साथ छठ पर्व का समापन हो जाता है। छठ पर्व के चौथे दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर उगते हुए सू्र्य को अध्र्य दिया जाता है। फिर व्रती भगवान सूर्य देव और छठ मैया से घर परिवार के सभी सदस्यों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि का कामना करते हुए आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस महापर्व में नए बांस की टोकरी, सूप, दूध, नारियल, हल्दी,चावल, सिंदूर, दीपक, सब्जी, शकरकंद, गन्ना, पान, सुपारी , नींबू, शहद, फल,फूल, मिठाई, कपूर आदि। इसके अलावा पूजा के प्रसाद के लिए ठेकुआ, गुड-चावल से बना खीर, हलवा, मालपुआ और चावल के लड्डू जैसे प्रमुख समानों की आवश्यकता होती है। भीलवाड़ा शहर में मुख्यत: वाटर वक्र्स तालाब, मानसरोवर तालाब, हरनी महादेव तालाब, धंधोलाई तालाब के अतिरिक्त महादेवी पार्क सहित अनेकों कुंडों सरोवरों के किनारे मनाया जाता है.! इस महापर्व के आयोजन के स्थान यानी तालाबों सरोवरों के आसपास साफ सफाई में जिला प्रशासन, नगर परिषद का सहयोग भी सरहनीय होता है.! |  |
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