लगातार कम हो रही ऊंटों की संख्या, उपयोगिता कम होते ही पशुपालक मुंह मोड़ने लगे

 


जयपुर। रेगिस्तान के जहाज के नाम से प्रसिद्ध ऊंट की उपयोगीता कम होने लगी है। उपयोगीता कम होने के कारण पशुपालकों ने ऊंट से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। ऊंटों के संरक्षण के लिए राजस्थान सरकार ने इसे साल,  2014 में राज्य पशु का दर्जा दिया था। लेकिन राजस्थान में पिछले 10 साल में ऊंटों की संख्या में करीब 35 फीसदी की गिरावट कमी आई है।

राज्य में ऊंटों की संख्या 3.26 लाख से कम होकर मात्र 2 लाख रह गई है। राज्य में वैसे तो सभी पशुओं की संख्या में कमी हो रही है, लेकिन ऊंटों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। राज्य में साल, 2012 में ऊंटों की गणना हुई थी। उस समय इनकी संख्या 3 लाख 26 हजार के करीब थी। साल, 2019 की गणना में यह संख्या 2 लाख 13 हजार रह गई। पिछले दो साल में 28 हजार ऊंट कम हो गए। ऐसे में अब ऊंटों की संख्या 2 लाख से भी कम हो गई है।

देशभर में ऊंटों की संख्या में कमी हो रही है। 2012 में पूरे देश में ऊंटों की संख्या 4 लाख थी जो 2019 में कम होकर ढ़ाई लाख रह गई थी। अब यह संख्या सवा दो लाख के आसपास बताई जा रही है। पशुपालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 10 साल में ऊंटों की संख्या में लगातार कमी हो रही है। बढ़ोतरी किसी भी साल नहीं हुई है। राजस्थान ही नहीं अन्य राज्यों में भी ऊंटों की संख्या में कमी हो रही है। गुजरात में यह संख्या 30 हजार से कम होकर 28 हजार रह गई। हरियाणा में 19 हजार से घटकर 5 हजार रह गई। उत्तरप्रदेश में 8 हजार से कम होकर सिर्फ 2 हजार रह गई है।

  सरकारी योजना से भी नहीं मिला लाभ

राजस्थान सरकार ने साल,2016 में उष्ट्र विकास योजना शुरू कर इनके प्रजनन को बढ़ावा देने का प्रयास किया था। इसके तहत पशु पालकों को ऊंटनी के प्रसव होने पर टोरड़ियों (ऊंटनी के बच्चे)के रख रखाव के लिए तीन किश्तों में 10 हजार की मदद पशुपालक को देना शुरू किया था। लेकिन फिर भी इनकी संख्या कम हो रही है। वेटनरी यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति ए.के.गहलोत का कहना है कि ऊंटों की संख्या में कमी होने का कारण परिवहन और खेती में इनकी उपयोगीता कम होना है।

 आजकल लोग ऊंटों के स्थान पर खेती में अत्याधुनिक यंत्र और परिवहन में वाहन काम में लेने लगे हैं। पर्यटन के क्षेत्र में भी इनकी उपयोगीता ज्यादा नहीं है। केमल सफारी के लिए काफी कम ऊंटों को उपयोग में लिया जाता है। कृषि और पशुपालन विशेषज्ञों का कहना है कि बिना लाभ के पशुपालक इन्हे पालने को तैयार नहीं है। ऐसे में वह ऊंटों को खुले में छोड़ रहे हैं। 

 

 

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