शरीर को सक्रिय और चुस्त बनाती है फीजियोथेरेपी

नई दिल्ली/गुरुग्राम। शारीरिक रूप से सक्रिय और चुस्त रहने के लिए फीजियोथेरेपी बहुत आवश्यक है। दुर्घटना में गंभीर चोट खाए लोग हों या लकवा के मरीज, उपचार के बाद शरीर के विभिन्न अंगों को सक्रिय बनाने में फीजियोथेरेपी की अहम भूमिका है। बीते माह ओलंपिक में कई भारतीय खिलाड़ियों ने मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया। वास्तव में एक ट्रेनर की तरह ही फीजियोथेरेपिस्ट भी काम करते हैं और खिलाड़ी को शारीरिक रूप से फिट बनाते हैं। उनके उत्साह और कड़ी मेहनत से ही खिलाड़ी अच्छी परफारमेंस दे पाते हैं।

कुछ सामान्य शारीरिक समस्याएं: काम के दौरान कई तरह की चोटें लग जाती हैं, जिन्हें वर्क रिलेटेड इंजरीज कहा जाता है। फीजियोथेरेपी से इनका इलाज संभव है।

कार्पल टनल सिंड्रोम: यह समस्या कलाई के अंदर नस के दबाव के कारण होती है। इसमें अंगूठे और अंगुलियों में तेज दर्द होता है। यह समस्या उन लोगों को होती है, जो कंप्यटूर माउस का प्रयोग अधिक करते हैं।

हुनरमंद बनते हैं खिलाड़ी:

1. सही मायने में फीजियोथेरेपिस्ट खिलाड़ी की मेधा और खेल के परफारमेंस का सही आकलन कर लेते हैं। इससेयह तय हो जाता है कि कौन-कौन सी एक्सरसाइज करवाई जाएं, जिससे खिलाड़ी अच्छे से खेल सकें।

2. फीजियोथेरेपिस्ट खिलाड़ी की मांसपेशियों व ताकत के आधार पर उसको स्ट्रेंथ कंडीशनिंग एक्सरसाइजेज की ट्रेनिंग देते हैं, जिससे वह कम से कम समय में बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार हो सके।

3. खिलाड़ी को फीजियोथेरेपिस्ट इस प्रकार तैयार करते हैं कि वे कम से कम चोट के शिकार हों और अपना खेल पूरा कर सकें, जिससे उनकी परफारमेंस में बाधा न आए।

4. अगर कोई खिलाड़ी चोटिल हो जाता है तो बहुत थोड़े समय में खिलाड़ी को फिर जल्द से जल्द खेल में कैसे उतारा जाए यह महत्वपूर्ण होता है। फीजियोथेरेपिस्ट खिलाड़ी को इसके लिए मानसिक और शारीरिक, दोनों ही तरह से तैयार करते हैं।

5. बहुत से खेल ऐसे हैं, जिसमें चोट अधिक लगती है, जैसे कि फुटबाल। इसमें घुटने की चोट बहुत कामन होती है। यदि यह चोट एक या दो ग्रेड की है तो फीजियोथेरेपी की सहायता से इसकी रिकवरी काफी हद तक हो जाती है और किसी भी प्रकार के आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती। इससे बहुत कम समय में खिलाड़ी फिर मैदान में होता है।

टेनिस एल्बो और गोल्फर्स एल्बो: ये कोहनी का दर्द है, जो कि बाहर और अंदर की तरफ होता है। कोहनी का अत्यधिक घर्षण या मांसपेशियों के ज्यादा काम करने के कारण होता है।

सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस: यह अब आम समस्या बन गया है। एक ही जगह पर देर तक बैठकर काम करने से गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव होता है, जिसके कारण हाथों में झनझनाहट पैदा होती है।

टीनो-साइनोवाइटिस: ये एक प्रकार का अंदरूनी बदलाव है, जिससे जोड़ों में पानी जैसा भरने लगता है और आगे चलकर ये दर्द पैदा करता है।

 मस्कुलोस्केलटल डिसआर्डर: शरीर के मांसपेशियों से संबंधित बीमारियां जो कि काम की वजह से ही होती हैं।

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