आनंद गिरि पर संत परंपरा का निर्वहन ठीक से न करने और अपने परिवार से संबंध बनाए रखने का आरोप

 


प्रयागराज। बाघम्बरी गद्दी मठ की अरबों रूपए की संपत्ति को लेकर भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी और शिष्य आनंद गिरी के बीच विवाद इसी साल खुल कर सामने आया था।

दरअसल, बाघम्बरी गद्दी मठ की अरबों रूपए की संपत्ति प्रयागराज में है। इसके अलावा नोएडा में भी मठ की कई एकड़ जमीन बताई जाती है। इसके अलावा मठ और संगम स्थित हनुमान मंदिर से भी करोड़ रूपए की आय होती है।

आनंद गिरी ने आरोप लगाया था कि महंत नरेन्द्र गिरि चढ़ावे के पैसे अपने परिवार पर खर्च करते थे। दोनों के बीच हालांकि संपत्ति विवाद को लेकर काफी समय से अनबन चल रही थी।

मामला तूल उस समय पकड़ा जब मई में हरिद्वार कुंभ में आनंद गिरि पर संत परंपरा का निर्वहन ठीक से न करने और अपने परिवार से संबंध बनाए रखने का आरोप लगा था। इसके बाद उन्हें अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया था। आनंद गिरी पर परिवार को साथ रखने का आरोप लगाया गया। संत परंपरा में परिवार को साथ रखना वर्जित है।

महंत नरेंद्र गिरी ने कहा था कि उन्होंने बाघंबरी गद्दी की 8 बीघा जमीन बेची थी और उसका हिसाब कोर्ट को दे दिया है। जबकि निष्कासन से नाराज गिरी के प्रमुख शिष्य आनंद गिरी ने आरोप लगाया था कि 2012 में नरेंद्र गिरी ने गद्दी की 8 बीघा जमीन सपा के तत्कालीन विधायक को 40 करोड़ रुपए में बेच दी थी। यह जमीन प्रयागराज के अल्लापुर इलाके में है। आज वहां बिल्डरों ने फ्लैट खड़े कर दिए हैं। इसका विरोध करने के कारण ही उन्हें निष्कासित किया गया।

गौरतलब है कि पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव और बाघंबरी गद्दी मठ के महंत नरेंद्र गिरि को सर्वसम्मति से पहली बार मार्च 2015 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया था जबकि दोबारा उन्हें अक्टूबर 2019 में अध्यक्ष चुना गया था।

देश में कुल 13 अखाड़े हैं। वर्ष 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना हुई थी। अखाड़ा परिषद ही महामंडलेश्वर और बाबाओं को प्रमाणपत्र देती है। कुंभ और अर्ध कुंभ मेले में कौन अखाड़ा कब और किस समय स्नान करेगा यह अखाड़ा परिषद ही तय करती है।

निरंजनी अखाड़े की स्थापना करीब 900 साल पहले हुई थी जबकि बाघंबरी गद्दी 300 साल पुरानी है। निरंजनी अखाड़ा की स्थापना गुजरात के मांडवी में हुई थी, जहां पर महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी। हालांकि इसका मुख्यालय प्रयागराज में है वहीं उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर और उदयपुर में भी अखाड़े ने अपने आश्रम बना रखे हैं।

शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। इनमें से कुछ डॉक्टर, कुछ वकील, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य शामिल हैं। वर्तमान समय में लगभग निरंजनी अखाड़ा में 33 महामंडलेश्वर, 1000 के करीब साधु और 10 हजार नागा शामिल हैं।

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