चिन्ता अन्दर ही अन्दर व्‍यक्‍ति‍ को खोखला कर देती है- आशादीदी

 


चित्तौडगढ़ ! प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय प्रताप नगर चित्तौडगढ सेवा केंद्र पर श्राद्व पक्ष पर परमात्मा शिव को भोग लगा कर दिवंगत आत्माओं के प्रति सुख शान्ति की कामना की।
आशा दीदी ने अपने उद्बोधन में चिन्ता चिता के समान है। जो जीवित व्यक्ति के अन्दर ही अन्दर जला कर खोखला कर देती है। वर्तमान मे समय चिन्ता की सूची तैयार करें तो एक लम्बी सूची तैयार हो जाएगी। चिन्ता व्यक्ति को समय से पहले ही बुढा कर देती है। किसी बात को लेकर ज्यादा सोचना , बार-बार सोचना, चिन्ता की बाते हर किसी के सामने बार-बार करना, चिन्ता को बढाता है। हर समस्या का समाधान शान्ति व धैर्य में है। आज सबसे ज्यादा चिन्ता माता-पिता को बच्चो की होती है। जिसमें जॉब, शादी, बुरे संग का डर आदि। जबकि सब आत्माएं अपना अपना भाग्य लिखा कर आयी है उस अनुसार उन्हे जो मिला है वो अवश्य मिलेगा। आपके चिन्ता करने या न करने से कुछ नही होने वाला। स्वंय पर भगवान पर और बच्चो पर विश्वास रखे, बच्चों को अच्छे संस्कार दे और चिन्ता मुक्त रहे। चिन्ता या तनाव लेने से कुछ नही होगा जो होना होता है वह होकर रहता है। यह कर्मो का सारा खेल बना हुआ है। हमें सदा अच्छे कर्म करने है और सबको अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देनी है।
चिता मुर्दे को जलाती है वही चिन्ता जीवित व्यक्ति को पल पल अन्दर ही अन्दर जलाती रहती है। ज्यादा चिन्ता करने से और ज्यादा सोचने से किसी का कुछ नही बिगडेगा लेकिन हमारा स्वास्थ्य जरूर बिगड जाएगा। हमारे शरीर मे नई-नई बिमारियॉ घर कर लेगी। जिसके बुरे परिणाम हमें ही भुगतने पडेगे। हमें ज्यादा चिन्ता व ज्यादा सोचने की आदत को बदलना होगा। हमें हर परिस्थिति मे शान्ति और धैर्य रखते हुए उसका समाधान ढूंढना चाहिए। इस सृष्टि रंगमंच पर सर्व आत्माएं अनेक जन्मो के कर्मो और संस्कार अनुसार अपना रोल प्ले कर रही है। उन्होने जन्म जन्म जैसे कर्म किए अच्छे व बुरे उस अनुसार उनके संस्कार बन गये। अब बने हुए संस्कार हमें चला रहे है। इसलिए व्यक्ति कहता है। हम चाहते नही थे लेकिन ऐसा हो गया। वो संस्कार इतने प्रबल होते है कि हमसे बुरा काम करा देते है। राजयोग से जब आत्मा परमात्मा को याद करती है तो आत्मा के पाप व बुरे संस्कार धीरे धीरे खत्म होने लगते हैं हमारे संस्कार अच्छे व दिव्य बनने लगते है। आज सर्व चिन्ताओ का मुख्य कारण बुरे संस्कार है। जबकि अच्छे संस्कार हमें चिन्तामुक्त बनाते है। स्वंय को अच्छे संस्कारो से अच्छा बनाये तो धीरे धीरे सारी चिन्ताएं समाप्त हो जाएगी।

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