जैन धर्म थ्योरी पर नही प्रैक्टिकल पर विश्वास करता है - साध्वी चंदनबाला

 

आसींद हलचल। भगवान के लिए सभी मानव बराबर है कर्मो के बंधन के कारण कोई सुखी है तो कोई दुखी है। सुख- दुःख भगवान नही देते है, अपनी आत्मा देती है, अच्छे कर्म किये होंगे तो सुख मिल जायेगा जिसने  बुरे कर्म किये होंगे तो उन्हें दुःख मिलेगा। जैन धर्म थ्योरी  पर विश्वास करने वाला नही है, प्रैक्टिकल पर विश्वास करता है। उक्त विचार पर्युषण पर्व के तीसरे दिन तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने धर्मसभा में व्यक्त किये।
        साध्वी ने कहा कि शरीर और  इन्द्रिया मरती है पर आत्मा कभी भी नही मरती है। जन्म और  मरण के मध्य की जो जिंदगी है उसको हमने कैसे जिया है वो सबसे महत्वपूर्ण है। भगवान महावीर ने जैन आगम में यही संदेश दिया कि  जो मैने किया है और जो में उपदेश दे रहा हूँ वह करना है, जिनवाणी का नाम ही आगम है। जिसके सुनने, पढ़ने और जानने से हमारा कल्याण हो जाता है। साध्वी ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति को अपने जीवन मे नही लावे। भारतीय संस्कृति पूरे संसार मे सभी को प्रेरणा प्रदान करती है और लाखों विदेशी लोग आज भारतीय संस्कृति का पालन कर रहे है। आज जो व्रद्ध आश्रम बने हुए है वहा पर आपको पैसों वालो के माँ - बाप मिलेंगे गरीब के नही। भगवान महावीर ने माँ के गर्भ में ही प्रतिज्ञा ले ली कि जब तक माँ - बाप है तब तक में सन्यास ग्रहण नही करूँगा, और उनकी सेवा करूँगा।
        साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा ने कहा कि आपने अपने घर को मंदिर मान लिया, माता- पिता को देवता मान लिया तो आपको कही भी जाने की जरूरत नही है। जिस घर मे माँ - बाप की पूजा नही, आदर नही, सम्मान नही वो घर नरक के समान है।
         साध्वी  आनन्द प्रभा ने कहा कि समाज मे एक दूसरे सहधर्मी का सहयोग करे, समन्वय की भावना रखकर उसका व्यवसाय में एवं सर्विस में सहयोग करने की भावना रखे।
         साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा ने अंतगढ़ दशांग सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि इंसान ईर्ष्या में इतना बड़ा पाप कर लेता है कि उसको भी पता नही चलता है। सबसे बड़े कर्मो का बंधन ईर्ष्या से ही होता है। पर्युषण पर्व के दौरान तप, त्याग, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण में भाग लेने की श्रावक- श्राविकाओं में होड़ मची हुई है। बाहर से आने वाले श्री संघो का स्थानीय संघ ने शब्दो से स्वागत किया।

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