चारित्र को निर्मल रखने की दवाई है प्रायश्चित्त: महातपस्वी महाश्रमण*

 

भीलवाड़ा(हलचल)  रविवार को आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के साथ गुरुकुलवासी चारित्रात्माएं आचार्यश्री महाश्रमणजी के सम्मुख उपस्थित थे। चतुर्दशी तिथि को हाजरी का क्रम होता है, इसलिए यह उपस्थिति श्रद्धालुओं को हर्षित कर रही थी। सर्वप्रथम तेरापंथ की आसाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक रहने और आचार्यश्री के निर्देशन में आगे बढ़ने को उत्प्रेरित किया। 

 

आचार्यश्री ने समुपस्थित चारित्रात्माओं व श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ‘ठाणं’ में दस प्रकार के बंध बताए गए हैं। बंध का भी महत्त्व है। इन्द्रियां विषयों को ग्रहण करती हैं तो वह बंध होता है। इन्द्रियां ज्ञान का माध्यम होती हैं। देखने से, सुनने से, स्पर्श करने से, गंध से कितना-कितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है। आदमी को अपने जीवन में ज्ञान का निरंतर विकास करने का प्रयास करना चाहिए। 

 

आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम में उपस्थित चारित्रात्माओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि साधु को अपने आचार के प्रति सतत् जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। यह जागरूकता साधु के चारित्र को निर्मल बनाए रखने में योगभूत होती है। यदि कोई चूक भी हो जाए तो उसका प्रायश्चित्त लेकर अपने चारित्र को निर्मल बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रायश्चित्त चारित्र को निर्मल बनाए रखने की मानों दवाई है। 

 

आचार्यश्री के पावन पाथेय प्रदान करने के उपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का वाचन कर अपनी मर्यादाओं के संकल्पों को दोहराया। प्रातः के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम से पूर्व प्रातःकाल में तेरापंथ नगर में नवनिर्मित तेरापंथ भवन के महाश्रमण सभागार का उद्घाटन आचार्यश्री की पावन सन्निधि में हुआ। इस दौरान तेरापंथी सभा-भीलवाड़ा व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारी गण उपस्थित रहे।  

 

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