उबरने के तीन सूत्र बताए मुरारी बापू ने पुरुषार्थ, प्रार्थना और प्रतीक्षा

 


नाथद्वारा. समस्या चाहे व्यक्तिगत हो, सामाजिक हो अथवा वैश्विक, मानस में उससे उबरने के तीन सूत्र बताए गए हैं, पुरुषार्थ, प्रार्थना और प्रतीक्षा। शीतल संत मोरारी बापू ने बुधवार को मानस विश्वास स्वरूपम रामकथा के पांचवें दिन व्यासपीठ से विश्वास स्वरूपम की व्याख्या को विस्तारित करते हुए कहा कि अहिल्या, शबरी, विभीषण आदि ने प्रतीक्षा की, जिसके प्रतिफल में उन्हें प्रभु श्रीराम मिल ही गए।

उन्होंने कहा कि सांसारिक जीवनचर्या की समस्या हो या किसी प्रकार की मानसिक दुविधाएं समाधान का प्रथम सूत्र पुरुषार्थ है, जिसका मतलब है कि हम समाधान का जितना प्रयास कर सकते हैं, हमें करना चाहिए। करते-करते जब पुरुषार्थ की पराकाष्ठा आ जाए तब परमात्मा को पुकारना चाहिए, उनसे प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना मानस का दूसरा सूत्र है, जो हमें समस्या से उबारने में सहयोग करता है। पुकार की भी सीमा होती है, जब उसकी पराकाष्ठा हो जाए तब हमें धैर्य रखते हुए प्रतीक्षा करनी चाहिए और आगे का सब कुछ प्रभु पर छोड़ देना चाहिए। समस्या के हल के रूप में प्रतीक्षा आखिरी कदम है। पुरुषार्थ, प्रार्थना और प्रतीक्षा तीनों के एक होने के बाद प्राकट्य होता है और सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। जिस प्रकार पहले रात्रि होती है और उसके बाद सूर्य निकलता है, उसी प्रकार रावण ने पहले जन्म लिया और राम ने बाद में।

बापू ने कहा कि आज प्रतीक्षा का नितांत अभाव है। हम लोग प्रतीक्षा नहीं कर पाते। प्रतीक्षा का दूसरा अर्थ विश्वास ही है, प्रभु पर भरोसे का पर्याय है। विश्वास अजन्मा है। विश्वास से प्रेम है। विश्वास से भक्ति है। विश्वास ही ब्रह्म है और जहां विश्वास रूपी अनन्य प्रेमार्पण है, वहां परमात्मा का प्रकट होना निश्चित है।

च्भये प्रगट कृपाला, दीन दयाला कौशल्या हितकारी

 

कथा के पांचवें दिन प्रभु श्रीराम के जन्म के प्रसंग में श्रोता भावविभोर हो उठे। श्रीनाथजी की नगरी में चहुं ओर रामजन्मोत्सव के बधाई गान गूंजे तो श्रद्धालु बापू के मनोहारी वर्णन में ऐसे मुग्ध हुए मानो अयोध्या में श्रीराम का प्राकट्य साक्षात हो रहा हो, बापू ने प्रभु श्रीराम के जन्म की घोषणा करते हुए बधाई दी तो हजारों की संख्या में मौजूद श्रोताओं ने एक साथ हाथ खड़े कर बधाइयां गाई। करतल ध्वनि और बैण्ड-बाजों की मधुर स्वर लहरियों के बीच भये प्रगट कृपालाए दीन दयालाए कौशल्या हितकारी, गूंज उठा।

बताए सुखद दाम्पत्य के तीन सूत्र

व्यासपीठ से मुरारी बापू ने कहा कि आज के युग में भी हम राम राज्य के श्रीराम जैसा पुत्र पा सकते हैं, लेकिन उसके लिए हमें भी कुछ तप करना पड़ेगा। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे को साधन नहीं, बल्कि साध्य बनाएं क्योंकि साधन कुछ समय के बाद गौण हो जाते हैं और यही कारण है कि आज पति-पत्नी के बीच झगड़े और विवाह विच्छेद के मामले बढ़ रहे हैं। आज महत्ती आवश्यकता है कि पति-पत्नी को प्रेम करे, पत्नी पति को आदर दे और अध्यात्म व भक्ति के रूप में दोनो परम तत्व की साधना करें, अपने ईश्वर की वंदना करें तभी राम जैसा बेटा प्राप्त होगा। लेकिन, आज यह स्थिति कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती। उन्होंने कहा कि परमात्मा सर्व समर्थ है और वे कहीं भी प्रकट हो सकते हैं।

आध्यात्म की गंगा के साथ मनोरंजन का मेला भी : रामकथा में आध्यात्म की गंगा के साथ आगंतुकों और उनके साथ आने वाले बालवृंदों के मनोरंजन का भी पूर्ण ध्यान रखा गया है। आयोजकों की ओर से चार्ली चैप्लिन, बौना, राक्षस याहा, पुष्कर से रावण हत्था बजाने वाले कलाकार, आगरा से जोकर, जयपुर से जादूगर, मंकी एवं पतलू धर्ममय हो रही नाथद्वारा की नगरी में आंगतुकों को लुभा रहे हैं। कथा स्थल के आस-पास आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। लुधियाना से जंगम जोगी के रूप में पांच जनों का दल भी बुलाया गया है, जो कलियुग की कथा का संगीतमय गायन करते हैं। डोलर, चकरी, ड्रैगन, मिकी माउस आदि भी बच्चों को बहला रहे हैं। आने वाले दिनों में जयपुर से बैम्बू मैन व आगरा से जोकर की अतिरिक्त उपस्थिति भी होने वाली है।

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