डॉक्टर की हर सलाह मानी, शुगर होने के बावजूद कोरोना को हराया,निजी में कराता इलाज तो खर्च होते 7 लाख

 


भीलवाड़ा (हलचल)।मध्यप्रदेश के नीमच शहर निवासी 45 वर्षीय *मुकेश सैनी* का कहना है कि कोरोना को आसानी से हराया जा सकता है। कोरोना भी आम बीमारियों की तरह एक रोग है, जिस पर समय रहते बेहतर उपचार, संयम व आत्मबल से विजय पाई जा सकती है। 

उन्होंने बताया कि वे लंबे समय से शुगर, ब्लड प्रेशर  के मरीज हैं। इन बीमारियों के साथ कोरोना ने घेर लिया था। छाती में 65-70 फीसद तक संक्रमण हो गया था। रक्त में आक्सीजन की मात्रा चिंताजनक स्थिति तक घट गई थी। परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मुकाबला कर कोरोना को हरा दिया। उन्होंने बताया कि वे 30 अप्रैल से 12 मई तक  भीलवाड़ा के महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती रहे। जिस स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं उन्हें इस अस्पताल में मिलीं उसका बखान शब्दों में करना संभव नहीं। चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मचारी उनके बिस्तर के आसपास बने रहते थे। उन लोगों से पूछना पड़ता था कि आप लोग सोते भी हैं या नहीं। उन्होंने कोरोना मरीजों को सलाह दी है कि अस्पताल में भर्ती होने पर स्वयं को चिकित्सक को सौंप दें। उनके प्रत्येक निर्देश का अक्षरश: पालन करें और इच्छा शक्ति मजबूत बनाए रखें। ऐसा करने से वे कोरोना को आसानी से हरा सकते हैं।

*अस्पताल पहुंचा तो बेड से उठ नहीं पाता था*
सैनी ने बताया कि कोरोना के शुरुआती लक्षण वे समझ नहीं पाए थे।  कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट आई थी। जिसके बाद उन्होंने मनासा के चिकित्सक से दवा ले होम आइसोलेशन में उपचार करवाने लगे। इसी बीच  ऐसी हालत हो गई कि स्वयं की ताकत से  उठना मुश्किल हो गया। जिसके बाद स्वजन ने नीमच के राजकीय अस्पताल और निजी अस्पतालों के चक्कर लगाए लेकिन कहीं पर भी बेड नहीं मिल पाया बहुत दिन तक भटकने के बाद , एक रिश्तेदार की सलाह पर भीलवाड़ा के महात्मा गांधी  हॉस्पिटल में भर्ती हुआ। सीटी स्केन समेत अन्य जांचों में पता चला कि स्थिति चिंताजनक है। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और न सिर्फ विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. रामअवतार बैरवा डॉक्टर दौलत मीणा और अस्पताल के पीएमओ डॉक्टर अरुण गोड ही नही बल्कि ड्यूटी डॉक्टर डॉ ऋषि कुमार टेलर डॉ अनिल, स्वास्थ्य कर्मचारी महेंद्र सिंह राठौड़ और वसीम की एक-एक सलाह गंभीरता से मानने लगे। चिकित्सक ने निर्देश दिया कि बिस्तर से उठना नहीं है। 12 दिन तक वे बिस्तर पर करवट बदलते पड़े रह गए परंतु चिकित्सक की सलाह की अवहेलना नहीं की। अस्पताल से घर लौटने के बाद शारीरिक कमजोरी बनी है, वजन घट चुका है, परंतु आत्मबल में कोई कमी नहीं आई।

*हर नया दिन बीते दिन से बेहतर:* सैनी ने कहा कि कोरोना संक्रमित मरीजों को यह मानना चाहिए कि उनका हर दिन बीते दिन से बेहतर है। यही मजबूत इरादा कोरोना को हराता है। अस्पताल में भर्ती होने के दौरान उन्हें अपनी तमाम रिपोर्ट की जानकारी मिली।  सीटी स्कोर19 था। स्थिति गड़बड़ हो रही थी परंतु उन्होंने यह ठान लिया था कि हर दिन सेहत में सुधार हो रहा है। कोरोना संक्रमित प्रत्येक मरीज को इसी भावना के साथ महामारी से लड़ना चाहिए।

*निजी में इलाज कराता तो लाखों होते खर्च*
उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं किसी निजी अस्पताल में इलाज करा था तो लाखों रुपए खर्च हो जाता है बेड के ₹10000 करीब और इससे दुगुने दवाइयों पर प्रतिदिन खर्च होते हैं जो इंजेक्शन सरकारी अस्पताल में निशुल्क लगे उनके बाजार में 30 से 40 हजार रुपये तक खर्च करना पड़ता है। पूरे इलाज का खर्चा 5 से 7 लाख रुपए तक बैठ जाता ।

*चिकित्सकों के साथ अटेंडेंट को भी ध्यान रखने की जरूरत**    

शास्त्री नगर निवासी प्रमिला राठौड़ ने 'हलचल 'को बताया कि जब पिछले दिनों वे कोरोना से संक्रमित हुई तो उपचार के लिए महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां  उनका ट्रोमा वार्ड इलाज चला ,13 दिन तक अस्पताल में रहने के बावजूद उन्हें उनके पति ने यह अहसास नहीं होने दिया कि वह घर में है या अस्पताल में यही नहीं नर्सेज स्टाफ ने भी उनका पूरा ध्यान रखा और समय-समय पर इंजेक्शन लगाए शुगर की जांच की और दवा दी जिससे उनका स्वास्थ्य लगातार सुधरा और अब वह बिल्कुल स्वस्थ महसूस कर रही है। उन्होंने कोविड-19  के संक्रमितों को सलाह देते हुए  कहा कि वह अस्पताल में घटने वाली घटनाओं पर ध्यान नहीं दे कर आत्मविश्वास बनाए रखें जिससे उन्हें स्वस्थ होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा इस बीमारी में डर ही बीमारी को बढ़ाने का बड़ा कारण है उन्होंने अस्पताल की व्यवस्था को अच्छी बताते हुए कहा कि अगर उनका जिससे तरह से सरकारी अस्पताल में उपचार हुआ है अगर वह बाहर किसी निजी अस्पताल में होता तो 10 से 12 लाख रुपए खर्च होते ।
उन्होंने कहा कि अस्पताल में लोगों का जितना दर्द उन्होंने देखा उस दर्द को देखकर मैं अपना गम भूल गई और कई मरीजों को तो मेरे पति ने वहां हिम्मत बंधाई इसके बाद वह भी ठीक होकर अस्पताल से अपने घर में अपने लोगों के पास पहुंचे हैं।

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