स्वच्छ दूध उत्पादन कर बढ़ाये आमदनी - डाॅ. यादव
भीलवाड़ा हलचल। कृषि विज्ञान केन्द्र भीलवाड़ा एवं अरणिया घोड़ा शाहपुरा द्वारा भारत की स्वतंन्त्रता के 75 वर्ष के स्मरणोत्सव की पूर्व संध्या पर स्वच्छ दूध उत्पादन तकनीक विषय पर आॅनलाइन कृषक प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डाॅ. सी. एम. यादव ने बताया कि दूध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखने के बावजूद भी वैश्विक परिदृश्य में भारत की उपस्थिति नगण्य है। इसका प्रमुख कारण दूध का अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा न उतर पाना है। स्वच्छ दूध का अर्थ दूध में बाहरी पदार्थों जैसे धूल, मिट्टी, गोबर, बाल, मक्खी आदि के साथ बीमारी फैलाने वाले एवं जीवाणुओं का न होना। स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए स्वच्छ वातावरण व दुग्धशाला, साफ बर्तन, स्वच्छ एवं स्वस्थ पशु, स्वच्छ दूध दुहने का तरीका एवं स्वच्छ दूधिया होना आवश्यक है। शस्य वैज्ञानिक डाॅ. के. सी. नागर ने बताया कि किसान भाई स्वच्छ दूध उत्पादन हेतु पशुओं को साईलेज, हरा चारा, खनिज लवण, अजोला आदि पर्याप्त मात्रा में खिलाते रहे दुग्ध उत्पादन बढ़ाने हेतु उत्तम किस्म की चारे वाली फसलों की बुवाई करें। डाॅ. नागर ने बताया कि कोराना महामारी को देखते हुए पशुशाला एवं डेयरी में काम आने वाले उपकरणों की नियमित सफाई करें और समय-समय पर हाइपोक्लोराइट का छिड़काव करें। कृषि महाविद्यालय भीलवाड़ा के पशुपालन वैज्ञानिक डा.ॅ एच. एल. बुगालिया ने बताया कि स्वच्छ दूध मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होता है। इसके सेवन से बीमारी का कोई खतरा नही रहता। दूध से फैलने वाली बीमारियों में टी. बी., टाइफाईड तथा पेचिश प्रमुख है। इनमें से कुछ के जीवाणु दूधारू पशु के थन से सीधे आ जाते है तथा कुछ दूध निकालने वाले व्यक्ति द्वारा दूध में आते है। दूध दुहने से पूर्व पशु का पिछला हिस्सा अच्छी तरह रगड़कर धोलें। दूध दूहने से पूर्व थनों को कीटाणुनाशक घोल में स्वच्छ कपड़ा डुबोकर पोंछ दें। पशु के थनों का रोज निरीक्षण करें। यदि कोई दरार हो तो उसको साफ करके एन्टिसेप्टिक क्रीम लगा दे। यदि थनो ंमें सूजन हो या मवाद अथवा खून दूध के साथ आ रहा हो तो वह थनैला रोग का सूचक है। इस हेतु पशु चिकित्सक को दिखाएँ। दूध दूहने से पहले दूधिया को अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह साफ कर सुखा लेना चाहिए। दूध को पूर्ण हस्त विधि द्वारा दुहना चाहिए। दूध दुहने वाला व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ होना चाहिए। पशु में टी.बी. तथा ब्रुसेलोसिस का वर्ष में एक बार परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए। |
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