कृषक मधुमक्खी पालन अपनाकर आमदनी बढायें - डाॅ. मून्दड़ा

 


 भीलवाड़ा हलचल। कृषि विज्ञान केन्द्र भीलवाड़ा एवं अरणिया घोड़ा शाहपुरा के संयुक्त तत्त्वावधान में  विश्व मधुमक्खी दिवस का आॅनलाइन आयोजन किया गया। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रसार शिक्षा निदेशक डाॅ. एस. एल. मून्दड़ा ने बताया कि मधुमक्खी का जन-जीवन से सीधा सम्बन्ध है। यह फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी करती है। आय में वृद्धि करने के साथ-साथ अमृत तुल्य शहद भी देती है। अतः मधुमक्खी पालन आज की परम आवश्यकता है। 

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डाॅ. सी. एम. यादव ने बताया कि मानवीय गतिविधियों के कारण मधुमक्खी एवं अन्य परागकणों के वाहक जैसे- तितलियाँ, चमगादड़ और हर्मिंग बर्ड का जीवन खतरे में है तथा इस दिवस को मनाने का उद्देश्य मधुमक्खी और अन्य परागकणों के वाहकों के महत्त्व तथा संरक्षण के बारें में जागरूकता बढ़ाना है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कृषि महाविद्यालय भीलवाड़ा के डीन डाॅ. के एल जीनगर ने मधुमक्खी पालन की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि यह एक मात्र कीट है जो सामाजिक प्राणी है। इनके समाज में एक राजा, एक रानी तथा हजारों की संख्या में श्रमिक होते है। प्रत्येक मधुमक्खी मण्डल की विशेष गन्ध होती है जिससे वे अपने परिवार के सदस्यों को पहचान लेती है। रानी के अण्डा देने की क्षमता समाप्त होने पर उसका वध करके नई रानी का चयन कर लिया जाता है। बारानी कृषि अनुसंधान आरजिया के प्रोफेसर ललित छाता ने मधुमक्खियों में लगने वाले रोग एवं बचाव के बारे में बताते हुए मधुमक्खियों के प्रकार, उनमें होने वाले चार तरह के परिवर्तन यथा अण्डा, लार्वा, प्यूपा और मक्खी, उनके उडान भरने की रफ्तार, सूंघने की शक्ति एवं शहद के रंग जो कि फूलों पर निर्भर करता है, के बारे में किसानों को अवगत कराया। 

वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. के. सी. नागर ने बताया कि पहला विश्व मधुमक्खी दिवस 20 मई 2018 को मनाया गया था तथा आज चैथा मधुमक्खी दिवस मनाया जा रहा है। यह एंटोना जनसा के जन्मदिन 20 मई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। जनसा 18 वीं शताब्दी में आधुनिक मधुमक्खी पालन की तकनीक के जनक कहलाते है। दुनिया के खाद्य उत्पादन का लगभग 33 प्रतिशत मधुमक्खियों पर निर्भर करता है। डाॅ नागर ने समन्वित कृषि प्रणाली में मधुमक्खी पालन कर आमदनी में इजाफा करने का सुझाव दिया।

 मृदा वैज्ञानिक डाॅ. रविकान्त शर्मा ने बताया कि मधुमक्खी पालन हेतु ज्योली कोट नामक मधुमक्खी पेटी उपयुक्त रहती है। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए एक बीघा में एक पेटी की आवश्यकता होती है। मधुमक्खियों का उडान क्षेत्र एक से दो वर्ग किलोमीटर तक का पालन क्षेत्र पाया गया डाॅ. शर्मा ने शहद के औषधीय गुण एवं उपयोग के बारे में चर्चा की। फार्म मैनेजर महेन्द्र सिंह चुण्ड़ावत एवं गोपाल टेपन ने मधुमक्खी पालन को आय का एक अतिरिक्त स्त्रौत मानते हुए मधुमक्खी के परिवार, वैज्ञानिक तरीके से पालन एवं शहद में उपलब्ध विभिन्न अवयवों के बारे में अवगत कराया। विश्व मधुमक्खी दिवस में 63 संभागियों ने भाग लिया।
 

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