चित्रों से प्रकृति प्रेम की अलख जगाते हुए रिया वैष्णव ने राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त किया

 


 शाहपुरा-किशन ।नारी के अनगिनत रूप और भाव हैं। आज की नारी कहीं फैशन के रंगों में लिपटी है तो कहीं सशक्तिकरण, बदलाव और विकास का पर्याय है। नारी ने ऐसे ही विभिन्न रूप-रंग और भाव को कैनवास पर सजाने का काम किया है चित्रकार रिया वैष्णव ने  (इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) बीएचयू (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) कल्चरल कमेटी की तरफ से आयोजित टेलेंटोपीडिया - 1 राष्ट्रीय कला स्पर्धा आयोजित की गई। जिसमें महाराणा मेवाड़ पब्लिक स्कूल उदयपुर की 9वीं कक्षा की प्रतिभावान छात्रा रिया वैष्णव द्वितीय स्थान पर रही। रिया वैष्णव कोरोना लॉकडाउन के चलते पिछले लंबे समय से शाहपुरा क्षेत्र के तसवारिया बासां में ननिहाल में रह कर यह कार्य कर रही है।इस प्रतियगिता में पूरे देश के कॉलेज स्तर के कलाकारों ने भाग लिया। जिसमें श्रेष्ठ 4- कलाकृतियां निर्णायक मंडल द्वारा चुनी गई, बाद में इन चार कृतियों में प्रथम,द्वितीय व तृतीय स्थान के लिए वोटिंग के दो दौर करवाए गए। निर्णायक मंडल के अनुसार रिया की अपनी कूंची पर अच्छी पकड़ है और इसके लिए अथक व अनवरत प्रयास की जरूरत होती है और धूप छांव का विशेष प्रभाव रिया की आर्ट में साफ दिखाई पड़ता है। जहां कोरोना महामारी के चलते लोग नियमों की अवहेलना करते,ताने मारते हुए दिखाई दे रहे है, वहीं रिया ने लोक डाउन के दौरान अपने कौशल पर लगातार काम किया और पिछले दो साल में कई संभाग स्तरीय,राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय स्तरीय कला प्रतियोगिताएं अपने नाम की और एक अंतरराष्ट्रीय एग्जीबिशन में ईरान में भी आपकी कलाकृति चयनित हुई।रिया अपनी माता ममता वैरागी (ब्यूटीशियन) व पिता धर्मेश वैष्णव (दवा कंपनी प्रतिनिधि) की इकलौती संतान है,रिया के माता पिता ने एक ही संतान का निर्णय लिया और उसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा, जो कहीं ना कहीं रिया की प्रतिभा में चरितार्थ होता दिखाई पड़ता हैं। 

रिया को प्रकृति के रंग बहुत प्रभावित करते है,जो इनकी कृतियों में भी झलकता है, उदयपुर जैसे बड़े शहर में रहते हुए भी रिया को गांव में रहना अच्छा लगता है, इसलिए जैसे ही मौका मिलता है, वो अपने ननिहाल तस्वारिया बांसा आने की जिद्द करती है।आजकल रिया अपने नाना रतन लाल वैष्णव सेवानिवृत अध्यापक के यहां है और यहां पर भी कला की तपस्या अनवरत जारी है, बाड़े जाना,खेतों में घूमना,पुराने घरों व मंदिरों व इमारतों को देखना,उनको अपने केनवास पर उतारना, ये रिया को बेहद पसंद है, जो आगे चलकर उनके बड़े लक्ष्य को पाने में नींव का पत्थर साबित होंगे।नंबरों की भागम भाग से अच्छा है,बचपन से ही बच्चों के कौशल को देखते,परखते हुए, बच्चों को उनके कौशल के क्षेत्र में ही आगे बढ़ने दिया जाए तो निश्चित ही आगे चलकर यही बच्चे देश के अच्छे नागरिक भी बनते है और विश्व में देश व समाज का नाम रोशन करते है!

 

3 साल की उम्र में ही रिया को थी आर्ट में दिलचस्पी।

 

रिया के पिता धर्मेश वैष्णव ने बताया कि 3 साल की उम्र में ही रिया को आर्ट में दिलचस्पी थी,रिया के पिता धर्मेश खुद भी एक आर्टिस्ट है जो कभी-कभी चित्रकला बनाते हैं पेंटिंग करते हैं रिया के पिताजी में  प्राकृतिक आर्ट  बनाने व उसकी सुन्दरता को निखारने का अनोखा तरीका  है जिसको लेकर उनके पिताजी के साथ साथ 3 साल की उम्र में ही रिया ने दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था तथा धीरे-धीरे प् रिया को आर्ट बनाने का शौक चढ़ गया था। रिया 10 वर्ष से लगातार रोजाना 4 से 5 घंटे अपनी कला आकृति को देती है और बहुत सारी प्रतियोगिता में भी इन्होंने भाग लिया है तथा रिया के पिता का कहना है कि उनके मित्र जो इंटरनेशनल आर्टिस्ट है उनसे अब रिया आर्ट सीख रही है।

 

25 हजार से अधिक मूल्यों में बिकती है रिया कि आर्ट,आजतक कहीं सारी आर्ट बिक चुकी है।

 

रिया के पिता धर्मेश वैष्णव ने बताया कि 3 साल की उम्र में आर्ट मैं दिलचस्पी लेने के बाद रिया बहुत ही सुंदर आर्ट बनाने लगी थी इसके बाद आज 10 वर्ष से लगातार आर्ट बना रही है रिया की बहुत सारी पेंटिंग लोग खरीदते भी है सोशल मीडिया पर रिया के अकाउंट पर आर्ट को देखकर लोग फोन करते हैं जिसके चलते 25 हजार से अधिक मूल्यों में रिया कि कहीं सारी पेंटिंग लोगो को अच्छी लगने पर खरीदते भी है।

 

पेंटिंग से बयां की प्रकृति की खूबसूरती

 प्रकृति तब सबसे अधिक सुन्दर दिखती है, जब फिजा में बसन्ती हवा की खुशबू फैलने लगती है और पेड़-पौधें यहाँ तक कि हर एक पत्ता अलमस्त धूप में खिलखिलाने लगता है। तभी तो चित्रकार की कूची सबसे अधिक बसन्त ऋतु में ही प्रकृति के चित्र उकेरती है…

 

रिया ने बताया कि प्रकृति में आपको सुख-दुख दोनों रंग दिख सकते हैं। काले बादल दुख और बरसते मेघ सुख यानी प्रसन्नता के प्रतीक होते हैं। शायद यही वजह है कि रिया वैष्णव शुरू से ही इस कला क्षेत्र में अपना रंग भर रही है। और पेंटिंग की थीम वे अक्सर प्रकृति और जीवन के अलग-अलग रूपों और रंगों पर ही रखती हैं। रिया कहती है कि प्रकृति की तरह ही इंसान के जीवन में सुख और दुख दोनों ही रंग आते हैं। इसलिये मैं अपनी पेंटिंग में मनुष्य के स्वभाव, सम्बन्धों और जीवन के उतार-चढ़ाव को भी प्रकृति के माध्यम से ही दर्शाती हूँ। मुझे जब खुशी को दर्शाना होता है तो चटख हरे रंग के पत्ते और पेड़-पौधे बनाती हूँ, वहीं जब उदासी को दिखाना होता है तो सूखी पत्तियाँ, सूखी डाल और खुरदुरे पहाड़ को चित्रित करती हूँ।

 

सीख देती है प्रकृति

हमारे यहाँ प्रकृति को ही एक रूपक की तरह फैलाकर ईश्वर की भी कल्पना की गई है। प्रकृति हमारे शिक्षक के समान सीख देती है। दुख हो या सुख, जब भी आप अकेले होते हैं तो प्रकृति ही आपके साथ होती है। इसलिये कोई भी रचनात्मक कार्य हो चाहे वह कविता हो या चित्रकारी, उसमें प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाना स्वाभाविक है। -

 

रिया के माता पिता का लक्ष्य है कि रिया को इस कला आकृति के क्षेत्र में चरम सिखर तक ले जाना चाहते है ओर समाज ओर क्षेत्र को उन्नति की राह दिखाना चाहते है जिससे क्षेत्र व समाज में हर लड़की अपने भविष्य के बारे में सोचकर मोटिवेट हो ओर अपना ओर अपने समाज परिवार ओर क्षेत्र के नाम को शिखर तक पहुंचाए।

 

सोसल मीडिया पर अकाउंट बनाकर रिया लोगो तक पहुंचाती हैं अपनी कला....

रिया के पिता धर्मेश वैष्णव ने बताया कि रिया कला आकृति के साथ साथ सोसल मीडिया पर भी अपनी कला आकृति शेयर कर लोगो के मन को मोहित करती है।ओर काफी लोग सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीर को देखकर रिया की सराहना करते है।

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