सायरी को किया सम्मानित
राजसमन्द (राव दिलीप सिंह) पिछले एक दशक से मानव सेवा के अनेक संगठनों से जुडते हुए सेवा का संकल्प लेकर कोराना महामारी को लेकर क्षैत्र में कार्यरत समाजसेवी का सायरी सुथार का कहना है कि भारत में सदा ही 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' की भावना को महत्व दिया गया है। परोपकार का शाब्दिक अर्थ है पर-उपकार, अर्थात दूसरों का भला करना। परोपकार में स्वार्थ का अंश नहीं होता। परोपकारी दीन-दुखियों के प्रति उदार, असहायों का सहारा तथा जन कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होते हैं। परोपकार का उदाहरण प्रकृति में दृष्टिगोचर होता है। नदियां दूसरों की प्यास बुझाने के लिए अनवरत रूप से जल प्रवाहित करती हैं। मेघ पृथ्वी को ¨सचित करते हैं। वृक्ष स्वयं तपिश सहकर पथिकों को छाया देकर पूरे ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करते हैं। कवि की ये पंक्तियां स्पष्ट करती हैं।
वृक्ष कबहुं नहि फल भखें, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारनै साधुन धरा शरीर
प्राचीन काल में भी परोपकार के अनेक दृष्टांत गोचर होते हैं। राजा भगीरथ परोपकार के लिए ही गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी लाए थे। बुद्ध ने परोपकार के लिए राजपाट का त्याग किया था। दधिचि ने परोपकार के लिए अपनी अस्थियां दान की थी। महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस जैसे आजादी के सेनानी परोपकार के लिए कितनी बार जेल गए और कितनों ने मौत को खुशी से गले लगाया। मनुष्य के कर्म की सुंदरता जिन गुणों से प्रकट होती है, उनमें परोपकार सबसे ऊपर है। दान, त्याग, सहिष्णुता, धैर्य, समता और ईश्वरीय सृष्टि का सम्मान करना आदि गुण परोपकार में ही आते हैं। प्रकृति हमें परोपकार का पाठ पढ़ाती है। चंद्रमा शीतलता, अग्नि से तेज, वायु से प्राण, पर्वत से वनस्पति व जड़ी बूटी और वृक्ष से हमें सरस फल मिलते हैं।
मनुष्य की कसौटी परोपकार है। परोपकार मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। इससे मानव में त्याग तथा बलिदान की भावना का विकास होता है। कहने का अर्थ यह है कि परोपकार से ही मानव कल्याण तथा अंतत: विश्व कल्याण संभव है। यह कहना है *सायरी सुथार* का जो विगत एक दशक से मानवाधिकार संगठन के बेनर तले इंसानी सेवा हेतु सदैव तत्पर रहकर , परोपकार के कार्य में जुटी हुई है । वही उनके सेवा कार्यों को लेकर कृष्णा बाल चिकित्सालय देवगढ़ के डाक्टर सत्य प्रकाश व योगेश शर्मा ने उन्हें सम्मानित किया । |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें