कभी सोचा मोदी राज के इन 8 सालों में क्या बदला आपकी सुबह की चाय महंगी हो गई, चलना महंगा हो गया और देखिए क्या कुछ हुआ...!
केंद्र सरकार में नरेंद्र मोदी सरकार के 8 सालों में आपके जीवन पर क्या असर आया है कभी आपने सोचा है आपकी सुबह की चाय हो या भोजन या फिर गाड़ी में चलना फिरना सब महंगा हो गया है सस्ता हुआ तो मोबाइल नेट का डाटा ऐसे ही और क्या बदला है आइए जानते हैं । डाटा की खपत बढ़ने के साथ-साथ इसकी कीमत में भारी कमी आई है। साल 2014 के मुकाबले 2021 में प्रति जीबी डाटा खर्च 269 रुपये से घटकर 10.93 रुपये रह गया। डाटा सस्ता होने के साथ-साथ इंटरनेट की स्पीड भी काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। 2014 में भारत में इंटरनेट की स्पीड करीब 1.7 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड थी, जो अप्रैल 2022 तक 20.10 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड पहुंच चुकी है। मोदी सरकार में दूरसंचार के क्षेत्र में जबरदस्त तेजी आई। इसे आंकड़ों से समझा जाए तो 2014 में ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार घनत्व 44 फीसदी था, जो 2021 में 59 फीसदी हो गया। मार्च 2014 में ब्रॉडबैंड कनेक्शन 6.1 करोड़ थे, जो जून 2021 में 79 करोड़ हो चुके हैं। यानी इसमें करीब 1200 फीसदी का इजाफा हुआ। मोबाइल कनेक्शन की बात की जाए तो मार्च 2014 में इनकी संख्या 93 करोड़ थी, जो सितंबर 2021 तक 118.9 करोड़ हो गए। यानी इसमें 28 फीसदी की वृद्धि हुई। मार्च 2014 में दूरसंचार घनत्व 75.23 फीसदी था, जो सितंबर 2021 में 86.89 प्रतिशत तक पहुंच गया। मार्च 2014 में इंटरनेट कनेक्शन की संख्या 25.15 करोड़ थी, जो जून 2021 में 83.37 करोड़ पहुंच गई। इसमें 231 फीसदी की वृद्धि हुई है। भारतीय उपभोक्ताओं की औसत मासिक डेटा खपत मार्च 2014 तक 61.66 एमबी थी, जो जून 2021 तक 14 जीबी हो चुकी है। इसमें 22 हजार 605 फीसदी का इजाफा हुआ। ओटीटी भी हुई महंगी? बीएसएनल ठप निजी कंपनियां मस्त देश की सरकारी फोन और मोबाइल कंपनी बी एस एन एल इन 8 सालों में लगभग ठप हो गई है पर निजी कंपनियां रॉकेट की तरफ तेजी से बढ़ी है लोगों को सस्ता मोबाइल और टेलीफोन उपलब्ध कराने वाली कंपनी की हालत यह है कि अब यह लड़खड़ा रही है और इसके अधिकांश कर्मचारी सेवानिवृत्ति लेकर जा चुका है ठेके के कर्मचारियों के जरिए चल रही यह कंपनी कभी भी निजी हाथों में मैं जान सकती है।
भीलवाड़ा की बात औद्योगिक नगरी भीलवाड़ा की बात कर तो हिंद 8 सालों में ज्यादा कुछ प्रगति नहीं हुई है शहर तेजी से बड़ा है वैसे ही परेशानियां भी बड़ी है अवैध निर्माण धड़ल्ले से हुआ है और यह रुकने का नाम नहीं ले रहा है बिना मापदंड के बन रहे व्यवसायिक परिसर में आधारभूत सुविधाएं नहीं है और इनकी देखरेख करने वाले जिम्मेदार विभाग मूकदर्शक बना हुआ है यही नहीं सड़कों की दशा दयनीय है चंबल के नाम पर वाईफाई लूटी लेकिन आज हालात है कि 2 दिन में कुछ समय के लिए पानी मिल रहा है कहां यह गया था कि प्रतिदिन पानी मिलेगा लेकिन हालात फिर बदतर होते जा रहे हैं शहर का विकास हुआ लेकिन विकास के साथ दलालों और भूमाफिया की प्रॉपर्टी तेजी से बढ़ी है अच्छे दिन किसके आए हैं इस बात के लोग चर्चा करने लगे।। यह अच्छे काम भी हुए नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को पहली बार प्रधानमंत्री बंदे के बाद नीतियों में ताबड़तोड़ बदलाव किए. अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में आर्थिक मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करने वाली मोदी सरकार आठवें साल में इस मोर्चे पर महंगाई जैसे समस्याओं पर घिर गई. इस दौरान भारत की विदेश नीति में बदलाव भी नजर आया. सामाजिक तौर पर देश में मंदिर-मस्जिद के विवाद भी सामने आए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो काशी-मथुरा का मामला भी कोर्ट पहुंच गया. नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में जितनी हाईवे और एक्सप्रेस-वे बने, वह अपने आप में रेकॉर्ड है. इसकी तारीफ उनके विरोधी भी करते हैं. पिछले 8 साल में दिल्ली की सियासत भी बदली. 2019 में मोदी सरकार ने जीत हासिल कर नया कीर्तिमान गढ़ा. मोदी 2.0 में कश्मीर से धारा-370 हटाया गया, सीएए कानून बना. किसान आंदोलन के बाद तीनों कृषि बिल भी वापस हुए. अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार नोटबंदी, तीन तलाक के खिलाफ कानून, सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर चर्चित रही थी. इस दौरान अंग्रेजों के जमाने के 1450 कानून भी खत्म किए गए. नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख स्कीमों में जन धन योजना, आयुष्मान योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत योजना और उज्ज्वला योजना शामिल है. बीजेपी को चुनावों में इन योजनाओं का फायदा भी मिला.
उज्जवला योजना के तहत करीब 8 करोड़ लोगों को मुफ्त गैस सिलेंडर दिया गया. मगर अब महंगाई के कारण स्कीम के सिलेंडर की कीमत भी 800 रुपये के करीब पहुंच गई है. महंगाई बनी चुनौती : मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में महंगाई कमोबेश नियंत्रण में रही. दूसरे कार्यकाल में पहले कोरोना और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने महंगाई में आग लगा दी. 2014 में उपभोक्ता कीमतों के आधार पर खुदरा महंगाई की दर 7.72 फीसदी थी. 2019 में यह दर 2.57 फीसदी तक पहुंची. मगर अप्रैल 2022 में यह 7.8 फीसदी पर पहुंच गई. खुदरा महंगाई (Retail Inflation) ने मोदी राज में ही अपना 8 साल का रेकॉर्ड तोड़ दिया. अप्रैल 2022 में थोक महंगाई (Wholesale Inflation) ने भी नया रिकॉर्ड बना दिया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में थोक महंगाई की दर 15.08 फीसदी रही. पिछले आठ साल में पेट्रोल की कीमत 40 रुपये और डीजल की कीमत 35 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा बढ़ी है. इस कारण दैनिक जरूरत के सामानों की कीमत में जनवरी 2014 के मुकाबले मार्च 2022 में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. रसोई गैस सिलेंडर सब्सिडी खत्म हो चुकी है और 8 साल में इसकी कीमत करीब तिगुनी हो गई है. खाने के तेल, अनाज, दूध, मसाले की कीमतों में औसतन दोगुनी बढ़ोतरी हुई है. अर्थव्यवस्था की हालत क्या है?
शिक्षा और स्वास्थ्य : 2014 के दौरान देश में प्राइवेट, सरकारी और गवर्मेंट एडेड प्राइमरी स्कूल की संख्या 8.47 लाख थी, पिछले आठ साल में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है. अभी देश में करीब 15 लाख प्राइमरी स्कूल हैं. 2014 से 20 के बीच देश में बने 15 एम्स, 7 आईआईएम और 16 ट्रिपल आईटी बनाए गए. 2014 में देश में 6 एम्स थे, अब इनकी संख्या 22 हो गई है. इसी तरह पिछले आठ साल में 170 से अधिक मेडिकल कॉलेज खोले गए. अगले दो साल के भीतर 100 मेडिकल कॉलेज बनकर तैयार हो जाएंगे. इसका असर डॉक्टरों की संख्या पर भी पड़ा. मोदी सरकार में डॉक्टर्स की संख्या में 4 लाख से ज्यादा का इजाफा हुआ है. देशभर में 25 ट्रिपल आईटी हैं, जो तीन स्तर पर संचालित हो रहे हैं. भारत सरकार के फंड से चलने के साथ ही, राज्य सरकार और पीपीपी मोड के तहत भी ट्रिपल आईटी का संचालन हो रहा है. 2014 तक भारत में सिर्फ 9 ट्रिपल आईटी थी. | ![]() |
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