कभी सोचा मोदी राज के इन 8 सालों में क्या बदला आपकी सुबह की चाय महंगी हो गई, चलना महंगा हो गया और देखिए क्या कुछ हुआ...!


केंद्र सरकार में नरेंद्र मोदी सरकार के 8 सालों में आपके जीवन पर क्या असर आया है कभी आपने सोचा है आपकी सुबह की चाय हो या भोजन या फिर गाड़ी में चलना फिरना सब महंगा हो गया है सस्ता हुआ तो मोबाइल नेट का डाटा ऐसे ही और क्या बदला है आइए जानते हैं
 
सुबह की चाय: दूध, चीनी से चायपत्ती तक... सब महंगे
सुबह की चाय में लगने वाले दूध से लेकर चायपत्ती तक आठ साल में हर चीज के दाम बढ़ गए हैं। 2014 में दूध 35.19 रुपये लीटर था, जो अब बढ़कर 51.56 रुपये लीटर हो गया है। यानी दूध के दाम में बीते आठ साल में 46 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ। चाय में पड़ने वाली चीनी 3,606 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 4,175 रुपये प्रति क्विंटल हो चुकी है। चायपत्ती की कीमत 2014 में 201.89 रुपये प्रति किलो थी, जो अब 284.25 रुपये प्रति हो गई हैं।

45 फीसदी बढ़े आटा-दाल के भाव
26 मई 2014 को जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, उस दिन खुदरा बाजार में गेहूं 2,161रुपये क्विंटल था। यह 25 मई 2022 को 2,968 रुपये क्विंटल हो चुका है। आटा बीते आठ साल में 2300 रुपये से बढ़कर 3349 रुपये प्रति क्विंटल हो चुका है।  2014 में 2806 रुपये क्विंटल वाला चावल अब 3609 रुपये क्विंटल बिक रहा है। तुअर दाल 7078 रुपये क्विंटल से बढ़कर 10327 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। यानी बीते आठ साल में आपकी थाली का बजट करीब 45 फीसदी बढ़ा है। 

डीजल पेट्रोल के दाम पहुंचे आसमान पर
ऑफिस जाने के लिए आप जिस कार का इस्तेमाल करते हैं, उसमें इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल-डीजल के दाम में 35 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। 26 मई 2014 को दिल्ली में पेट्रोल 71.41 रुपये लीटर था, जो अब 96.76 रुपये लीटर पहुंच चुका है। डीजल के दाम 2014 में 56.71 रुपये लीटर थे, जो अब 89.66 रुपये लीटर बिक रहा है। आठ साल में पेट्रोल 35 फीसदी तो डीजल 58 फीसदी महंगा हुआ है। कार से चलने के तरीके में भी बदलाव हुआ है। 2014 में सबसे ज्यादा बिकने वाली कार मारुति ऑल्टो थी। उस वक्त बिक्री के मामले में ऑल्टो के बाद स्विफ्ट डिजायर, स्विफ्ट, वैगनआर, ह्युंदै आई-10 का नंबर आता था। अप्रैल 2022 में सबसे ज्यादा बिकने वाली पांच कारों में वैगनआर, मारुति अर्टिगा, टाटा नेक्सन, ह्युंदै क्रेटा और मारुति ब्रेजा शामिल थीं। इन पांच टॉप सेलिंग कारों में चार मिनी एसयूवी हैं, जबकि 2014 की टॉप सेलिंग पांच कारों में चार छोटी (हैचबैक) कारें थीं। 

सस्ता हुआ मोबाइल डाटा
भारत में डाटा का खर्च पिछले आठ साल में काफी तेजी से बढ़ा है।

। डाटा की खपत बढ़ने के साथ-साथ इसकी कीमत में भारी कमी आई है। साल 2014 के मुकाबले 2021 में प्रति जीबी डाटा खर्च 269 रुपये से घटकर 10.93 रुपये रह गया। डाटा सस्ता होने के साथ-साथ इंटरनेट की स्पीड भी काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। 2014 में भारत में इंटरनेट की स्पीड करीब 1.7 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड थी, जो अप्रैल 2022 तक 20.10 मेगाबाइट्स प्रति सेकंड पहुंच चुकी है। मोदी सरकार में दूरसंचार के क्षेत्र में जबरदस्त तेजी आई। इसे आंकड़ों से समझा जाए तो 2014 में ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार घनत्व 44 फीसदी था, जो 2021 में 59 फीसदी हो गया। मार्च 2014 में ब्रॉडबैंड कनेक्शन 6.1 करोड़ थे, जो जून 2021 में 79 करोड़ हो चुके हैं। यानी इसमें करीब 1200 फीसदी का इजाफा हुआ। मोबाइल कनेक्शन की बात की जाए तो मार्च 2014 में इनकी संख्या 93 करोड़ थी, जो सितंबर 2021 तक 118.9 करोड़ हो गए। यानी इसमें 28 फीसदी की वृद्धि हुई। मार्च 2014 में दूरसंचार घनत्व 75.23 फीसदी था, जो सितंबर 2021 में 86.89 प्रतिशत तक पहुंच गया। मार्च 2014 में इंटरनेट कनेक्शन की संख्या 25.15 करोड़ थी, जो जून 2021 में 83.37 करोड़ पहुंच गई। इसमें 231 फीसदी की वृद्धि हुई है। भारतीय उपभोक्ताओं की औसत मासिक डेटा खपत मार्च 2014 तक 61.66 एमबी थी, जो जून 2021 तक 14 जीबी हो चुकी है। इसमें 22 हजार 605 फीसदी का इजाफा हुआ।

ओटीटी भी हुई महंगी?
भारत में ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म की एंट्री पहली बार 2008 में हुई। उस वक्त रिलायंस एंटरटेनमेंट ने बिगफ्लिक्स प्लेटफॉर्म लॉन्च किया था। 2014 तक भारत में कुछ और ओटीटी एप्स की एंट्री हुई और इसके एक्टिव सब्सक्राइबर्स की संख्या 1.23 करोड़ तक पहुंच गई। यही वह दौर था, जब डिजिवाइव कंपनी ने नेक्सजीटीवी (nexGTv) के जरिए आईपीएल मैचों का लाइव प्रसारण शुरू किया। इसके अलावा जी के डिटो टीवी से लेकर सोनी लिव भी इसी दौर में लॉन्च होने वाले प्लेटफॉर्म रहे। 

अब आठ साल बाद यानी 2022 में पारंपरिक मीडिया के उपभोक्ताओं में कमी आने का कारण ओटीटी सेवाओं को ही माना जा रहा है। दरअसल 2020-21 की अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट की मानें तो ओटीटी सेवाओं का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 50.3 करोड़ तक पहुंच चुकी है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पेमेंट के जरिए इन सेवाओं का इस्तेमाल करने वालों की संख्या कुल ओटीटी इस्तेमाल करने वालों का 10 फीसदी यानी पांच करोड़ के आसपास हो सकती है।

तेजी से घट रहे डीटीएच-केबल टीवी के कनेक्शन
भारत में डीटीएच (डायरेक्ट टू होम) सेवाओं को नवंबर 2000 में मंजूरी मिली। देश में 2003 में डिश टीवी इस सेवा का पहला प्रदाता था। 31 मार्च 2014 तक भारत में डीटीएच कनेक्शन के लिए रजिस्टर्ड उपभोक्ताओं की संख्या 6.48 करोड़ थी, जबकि इसके एक्टिव यूजर्स का आंकड़ा 3.71 करोड़ था। इस दौरान केबल टीवी उपभोक्ताओं की संख्या करीब 9.90 करोड़ थी। 2021 के अंत तक देश में सक्रिय डीटीएच उपभोक्ताओं की संख्या 6.98 करोड़ रह गई, जबकि केबल टीवी उपभोक्ताओं का आंकड़ा 4.55 करोड़ पर आ गया

बीएसएनल ठप निजी कंपनियां मस्त

देश की सरकारी फोन और मोबाइल कंपनी बी एस एन एल इन 8 सालों में लगभग ठप हो गई है पर निजी कंपनियां रॉकेट की तरफ तेजी से बढ़ी है लोगों को सस्ता मोबाइल और टेलीफोन उपलब्ध कराने वाली कंपनी की हालत यह है कि अब यह लड़खड़ा रही है और इसके अधिकांश कर्मचारी सेवानिवृत्ति लेकर जा चुका है ठेके के कर्मचारियों के जरिए चल रही यह कंपनी कभी भी निजी हाथों में  मैं जान सकती है।

 

भीलवाड़ा की बात

औद्योगिक नगरी भीलवाड़ा की बात कर तो हिंद 8 सालों में ज्यादा कुछ प्रगति नहीं हुई है शहर तेजी से बड़ा है वैसे ही परेशानियां भी बड़ी है अवैध निर्माण धड़ल्ले से हुआ है और यह रुकने का नाम नहीं ले रहा है बिना मापदंड के बन रहे व्यवसायिक परिसर में आधारभूत सुविधाएं नहीं है और इनकी देखरेख करने वाले जिम्मेदार विभाग मूकदर्शक बना हुआ है यही नहीं सड़कों की दशा दयनीय है चंबल के नाम पर वाईफाई लूटी लेकिन आज हालात है कि 2 दिन में कुछ समय के लिए पानी मिल रहा है कहां यह गया था कि प्रतिदिन पानी मिलेगा लेकिन हालात फिर बदतर होते जा रहे हैं शहर का विकास हुआ लेकिन विकास के साथ दलालों और भूमाफिया की प्रॉपर्टी तेजी से बढ़ी है अच्छे दिन किसके आए हैं इस बात के लोग चर्चा करने लगे।।

यह अच्छे काम भी हुए

 नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को पहली बार प्रधानमंत्री बंदे के बाद नीतियों में ताबड़तोड़ बदलाव किए. अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में आर्थिक मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करने वाली मोदी सरकार आठवें साल में इस मोर्चे पर महंगाई जैसे समस्याओं पर घिर गई. इस दौरान भारत की विदेश नीति में बदलाव भी नजर आया. सामाजिक तौर पर देश में मंदिर-मस्जिद के विवाद भी सामने आए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो काशी-मथुरा का मामला भी कोर्ट पहुंच गया.

Narendra Modi Government

नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में जितनी हाईवे और एक्सप्रेस-वे बने, वह अपने आप में रेकॉर्ड है. इसकी तारीफ उनके विरोधी भी करते हैं.

पिछले 8 साल में दिल्ली की सियासत भी बदली. 2019 में मोदी सरकार ने जीत हासिल कर नया कीर्तिमान गढ़ा. मोदी 2.0 में कश्मीर से धारा-370 हटाया गया, सीएए कानून बना. किसान आंदोलन के बाद तीनों कृषि बिल भी वापस हुए. अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार नोटबंदी, तीन तलाक के खिलाफ कानून, सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर चर्चित रही थी. इस दौरान अंग्रेजों के जमाने के 1450 कानून भी खत्म किए गए.

नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख स्कीमों में जन धन योजना, आयुष्‍मान योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्‍याण अन्‍न योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्‍मान निधि, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्‍मान भारत योजना और उज्‍ज्‍वला योजना शामिल है. बीजेपी को चुनावों में इन योजनाओं का फायदा भी मिला.

 

Narendra Modi Government

उज्जवला योजना के तहत करीब 8 करोड़ लोगों को मुफ्त गैस सिलेंडर दिया गया. मगर अब महंगाई के कारण स्कीम के सिलेंडर की कीमत भी 800 रुपये के करीब पहुंच गई है.

महंगाई बनी चुनौती : मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में महंगाई कमोबेश नियंत्रण में रही. दूसरे कार्यकाल में पहले कोरोना और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने महंगाई में आग लगा दी. 2014 में उपभोक्ता कीमतों के आधार पर खुदरा महंगाई की दर 7.72 फीसदी थी. 2019 में यह दर 2.57 फीसदी तक पहुंची. मगर अप्रैल 2022 में यह 7.8 फीसदी पर पहुंच गई. खुदरा महंगाई (Retail Inflation) ने मोदी राज में ही अपना 8 साल का रेकॉर्ड तोड़ दिया. अप्रैल 2022 में थोक महंगाई (Wholesale Inflation) ने भी नया रिकॉर्ड बना दिया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में थोक महंगाई की दर 15.08 फीसदी रही. पिछले आठ साल में पेट्रोल की कीमत 40 रुपये और डीजल की कीमत 35 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा बढ़ी है. इस कारण दैनिक जरूरत के सामानों की कीमत में जनवरी 2014 के मुकाबले मार्च 2022 में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. रसोई गैस सिलेंडर सब्सिडी खत्म हो चुकी है और 8 साल में इसकी कीमत करीब तिगुनी हो गई है. खाने के तेल, अनाज, दूध, मसाले की कीमतों में औसतन दोगुनी बढ़ोतरी हुई है.

अर्थव्यवस्था की हालत क्या है?

 

  • 2014 में भारत की जीडीपी 112 लाख करोड़ रुपये के आसपास थी. 2022 में अभी भारत की जीडीपी 232 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है.
  • पिछले आठ साल में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है. 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 22.34 लाख करोड़ रुपये था, अभी देश में 45 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार है. यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत के आयात बिल पर दबाव बढा है और इसका असर देश के फॉरेन रिजर्व पर भी पड़ा है.
  • 2014 में देश में आम आदमी की वार्षिक आय पहले आम आदमी की सालाना आय करीब 80 हजार रुपये थी. अब यह करीब दोगुनी होकर 1.50 लाख रुपये से ज्यादा है.
  • 2014 में देश पर विदेशी कर्ज 33.89 लाख करोड़ रुपये था. मार्च 2022 में जारी वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार पर कुल कर्ज का बोझ बढ़कर 128.41 लाख करोड़ रुपये हो गया है. देश के हर नागरिक पर 98,776 रुपये का कर्ज है.
  • एनपीसीआई के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2014-15 में 76 लाख करोड़ रुपये के डिजिटल पेमेंट हुआ था, 2021-22 में 200 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक रकम का डिजिटल पेमेंट के तहत ट्रांजेक्शन हुआ.
  • पिछले आठ साल में भारत में बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक, अभी देश में करीब 40 करोड़ लोगों के पास रोजगार नहीं है. 2013-14 तक भारत की बेरोजगारी दर 3.4 फीसदी थी, जो इस समय बढ़कर 8.7 फीसदी हो गई है.
  • मोदी सरकार के दौरान देश में बड़ी तेजी से हाईवे बने. मनमोहन सरकार के दौरान वर्ष 2009 से 2014 के बीच कुल 20,639 किमी हाईवे का निर्माण हुआ था. अप्रैल 2014 में देश में हाईवे की लंबाई 91,287 किलोमीटर थी. 20 मार्च, 2021 तक 1,37,625 किलोमीटर पहुंच गई. अभी देश में 25 हजार किमी हाईवे का निर्माण जारी है. हर दिन करीब 68 किलोमीटर नेशनल हाईवे का निर्माण किया जा रहा है.
  • नरेंद्र मोदी के पिछले 8 साल के शासन में टैक्सपेयर्स की तादाद दोगुनी से ज्यादा बढ़ी. आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2013-14 में जहां कुल करदाता 3.79 करोड़ थे, 2020-21 के मुताबिक देश में अभी कुल 8,22,83,407 करदाता हैं..

शिक्षा और स्वास्थ्य : 2014 के दौरान देश में प्राइवेट, सरकारी और गवर्मेंट एडेड प्राइमरी स्कूल की संख्या 8.47 लाख थी, पिछले आठ साल में इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है. अभी देश में करीब 15 लाख प्राइमरी स्कूल हैं. 2014 से 20 के बीच देश में बने 15 एम्स, 7 आईआईएम और 16 ट्रिपल आईटी बनाए गए. 2014 में देश में 6 एम्स थे, अब इनकी संख्या 22 हो गई है. इसी तरह पिछले आठ साल में 170 से अधिक मेडिकल कॉलेज खोले गए. अगले दो साल के भीतर 100 मेडिकल कॉलेज बनकर तैयार हो जाएंगे. इसका असर डॉक्टरों की संख्या पर भी पड़ा. मोदी सरकार में डॉक्टर्स की संख्या में 4 लाख से ज्यादा का इजाफा हुआ है. देशभर में 25 ट्रिपल आईटी हैं, जो तीन स्तर पर संचालित हो रहे हैं. भारत सरकार के फंड से चलने के साथ ही, राज्य सरकार और पीपीपी मोड के तहत भी ट्रिपल आईटी का संचालन हो रहा है. 2014 तक भारत में सिर्फ 9 ट्रिपल आईटी थी.

टिप्पणियाँ

समाज की हलचल

डांग के हनुमान मंदि‍र के सरजूदास दुष्‍कर्म के आरोप में गि‍रफ्तार, खाये संदि‍ग्‍ध बीज, आईसीयू में भर्ती

एलन कोचिंग की एक और छात्रा ने फांसी लगाकर की आत्महत्या

शीतलाष्टमी की पूजा आज देर रात से, रंगोत्सव (festival of colors) कल लेकिन फैली है यह अफवाह ...!

21 जोड़े बने हमसफर, हेलीकॉप्टर से हुई पुष्पवर्षा

ब्याजखोरों की धमकियों से परेशान ग्रामीण ने खाया जहर, ससुाइड नोट में 5 लोगों पर लगाया परेशान करने का आरोप

मुंडन संस्कार से पहले आई मौत- बेकाबू बोलेरो की टक्कर से पिता-पुत्र की मौत, पत्नी घायल, भादू में शोक

छोटे भाई की पत्नी ने जान दी तो बड़े भाई से पंचों ने की 3 लाख रुपये मौताणे की मांग, परिवार को समाज से किया बहिष्कृत